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श्री संवेगरंगशाला
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विभ्रम है अथवा वह सीप में रजत का भ्रान्त ज्ञान है अथवा वह मृग तृष्णा में उज्जवल जल का दर्शन है अथवा तो वह इस लोक में सुना जाता विपरीत धातु है अथवा वह अकाल में उत्पन्न हुआ उपद्रव है तथा वह रजो वृष्टि का उत्पात है अथवा वह निश्चय घोर अन्ध कुयें रूपी गुफा में पतन है, क्योंकि मिथ्या दर्शन रूपी शल्य सम्यक्त्व को रोकने वाला प्रति मल्ल है और सन्मार्ग में चलने वाले को महान् कीचड़ का समूह है। और इसके कारण जीव जो अदेव को भी देव, अगुरू को भी गुरू, अतत्त्व को भी तत्त्व और अधर्म को भी धर्म रूप में मानता है तथा जो परम पद का साधक है, यथोक्त गुण वाले देव, गुरू, तत्त्व और धर्म में अरूचि अथवा प्रद्वेष को करता है तथा देव आदि परम पदार्थों में उदासीनता से करता है वह सर्व इस विश्व में मिथ्या दर्शन शल्य का दुष्ट विलास है। तथा यह मिथ्या दर्शन शल्य सर्व प्रकार से जीता अविवेक का मूल बीज है, क्योंकि मिथ्यात्व से मनुष्य बुद्धिमान हो फिर भी मूढ़ मन वाला हो जाता है। जैसे अति तृषातुर मृग मृगजल से भी पानी को खोजता है वैसे मिथ्यात्व से मूढ़ मन वाला गलत को सत्य देखता है। जैसे धतूरे का भक्षण करने वाला पुरुष मिथ्या पदार्थ को भी सत्य देखता है, वैसे मिथ्यात्व से मूढ़ मति वाला धर्म अधर्म के विषय में उलटा देखता है ।
अनादिकाल से मिथ्यात्व की भावना से मूढ़ बना जीव मिथ्यात्व के क्षयोपशम से प्राप्त भी सम्यकत्व में दुःख से प्रीति करता है। उसमें रूचि करते पीड़ा होती है। तीव्र मिथ्यात्वी जीव जो महान दोष करता है ऐसा दोष अग्नि भी नहीं करती है, जहर भी नहीं करता है और काला नाग भी नहीं करता है। जैसे अच्छी तरह जल से धोये हुए भी कड़वे पात्र में दूध का नाश होता है, वैसे मिथ्यात्व से कलुषित जीव में प्रगट हुआ तप, ज्ञान और चारित्र का विनाश होता है। यह मिथ्यात्व संसार रूप महान् वृक्ष का बड़ा बीज रूप है, इसलिए मोक्ष को चाहने वाला आत्माओं का उसको त्याग करना चाहिए। मिथ्यात्व से मूढ़ मन वाला जीव मिथ्या शास्त्रों का श्रवण से प्रगट हुई कुवासना से वासित होता है, अतत्त्व तत्त्व अथवा आत्मतत्त्व को भी नहीं जानता है । मिथ्यात्व के अन्धकार से विवेक रूप नेत्र को बन्द करने वाला जीव उल्लू के समान सद्धर्म को जानने वाले धर्मोपदेशक सूर्य को भी नहीं देख सकता है। यदि मनुष्य में यह एक ही मिथ्यात्व रूप शल्य लगा है तो सर्व दुःखों के लिए वही पर्याप्त है अन्य दोष से कोई प्रयोजन नहीं है। जहर से युक्त बाण से भेधन हुआ पुरुष उसका प्रतिकार नहीं करने से जैसे वह वेदना प्राप्त करता है वैसे मिथ्यात्व शल्य से वेधा गया यदि उसे दूर नहीं करने वाला