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श्री संवेगरंगशाला
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ब्राह्मण पुत्र का दृष्टान्त देव मन्दिर, चार कोने वाली बावड़ी, लम्बी बावड़ी, गोलाकार बावड़ी तथा बाग की श्रेणियों से रमणीय श्रावस्तीपुरी में अनेक राजाओं द्वारा चरण कमल में नमाने वाला और जगत प्रसिद्ध नरेन्द्र सिंह नाम का राजा था। उसे वेद के अर्थ के विचार करने में कुशल अमर दत्त नामक पुरोहित था। उस पुरोहित का सुलस नामक पुत्र यौवनवय से ही श्रुतज्ञान से, वैभव से और राजा के सत्कार से अत्यन्त गर्व को धारण करता था। समान वय वाले मित्रों से घिरा हुआ वह निरंकुश हाथी के समान लोकापवाद को भी अपमान करके नगर के मुख्य बड़े आदि राजमार्ग में स्वच्छन्दतापूर्वक घूमता था। एक समय सुखपूर्वक बैठा हआ उसे माली ने भ भगुजार करते भौंरों से भरा हुआ आम की मंजरी भेंट दी। कामदेव ने स्वहस्त से लिखा हुआ आमन्त्रण पत्र हो इस तरह मंजरी लेकर वसन्त मास आया हो ऐसा मानकर प्रसन्न हुआ, वह अपने हाथ से माली को दान देकर चतुर परिवार से घिरा हुआ शीघ्र नन्दन नामक उद्यान में गया। फिर विनय से खड़े हुए नन्दन उद्यान के रक्षक ने उसे कहाहे कुमार ! आप स्वयं एक क्षण इस प्रदेश में दृष्टिपात करें। फैलती श्रेष्ठ सुगन्ध से आये हुए भ्रमरों का समूह से शोभते डालियों के अन्तिम भाग वाले बकुल वृक्ष को हाथ में पकड़ा हुआ रूढाक्ष की माला वाले जोगी समान शोभते थे। ऊंचे बढ़े हुए पत्तों से आकाश तल के विस्तार को स्पर्श करते कमेलि वृक्ष भी प्रज्वलित अग्नि के समूह के समान विरही जनों को सन्ताप करता है, और कमलरूपी मुखवाली, केसुड़ के पुष्परूपी रेशमी वस्त्र वाली, मालती की कलियाँरूपी दांत वाली, पाटल वृक्ष रूपी नेत्रों वाली, कलियाँ वाला कुरूबक जाति वृक्ष का गुच्छ रूप महान् स्तन वाली और स्फूरायमान अति कोमल तिलक वृक्षरूप तिलक वाली यह वन लक्ष्मी कोयल के मधुर आवाज से कामदेव रूपी राजा का तीन जगत के विजय यश के गीत गाती है । इस तरह वह गा रही थी। इस तरह नन्दन वन के पालक ने प्रगट वृक्ष की शोभा बताने से दो गुणा उत्साह वाला वह उद्यान के अन्दर परिभ्रमण करने लगा। वहाँ घूमते हुए उसने किसी तरह वन की गाढ झाड़ियों के बीच एकान्त में रहे स्वाध्याय करते एक महामुनिवर को देखा। फिर पापिष्ठमन से अत्यन्त जातिमद को धारण करते हँसी करने की इच्छा से मुनि श्री को भक्तिपूर्वक वंदन किया और कहा कि-हे भगवन्त ! संसार के भय से डरा हुआ मुझे आप अपना धर्म कहो, कि जिससे आपके चरण कमल में दीक्षा स्वीकार करूँ।