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श्री संवेगरंगशाला (५) परिग्रह, (६) क्रोध, (७) मान, (८) माया, (६) लोभ, (१०) प्रेम (राग), (११) द्वेष, (१२) कलह, (१३) अम्याख्यान, (१४) अरति-रति, (१५) पैशुन्य, (१६) पर-परिवाद, (१७) माया मृषा वचन, और (१८) मिथ्यादर्शन शल्य । इसे अनुक्रम विस्तारपूर्वक कहते हैं।
१.प्राणीवध :-उच्छ्वास आदि प्राण जिसको होते उसे जीव प्राण कहते हैं । उस प्राणों का वध करना अथवा वियोग करना वह प्राणीवध कहलाता है और वह नरक का मार्ग है। निर्दयता धर्म ध्यान रूपी कमल के वन का नाश करने वाली अचानक प्रचण्ड हिम की वृष्टि रूप अथवा अग्नि के बड़े चूल्हे घिराव रूप हैं, अपकीति रूपी लता के विस्तार के लिए पानी की बडी नीक है, प्रसन्न वचन मन वाले मनुष्यों के देश में शत्र सैन्य का आगम का श्रवण है तथा असहनता और अविरति रूप रति और प्रीति का कामदेव रूप पति है। महान् प्राणी रूपी पंतगिये के समूह का नाश करने वाला प्रज्वलित दीपक का पात्र है, अति उत्कंट पाप रूप कीचड़ वाला समुद्र अति गहरा है । अत्यन्त दुर्गम दुर्गति रूपी पर्वत की गुफा का बड़ा प्रवेश द्वार है, संसार रूपी भट्टी में तपे हुये अनेक प्राणी को लोहे के हथौड़े से मारने के लिए एरण है । क्षमा आदि गुण रूप अनाज के कण को दलने के लिये मजबूत चक्की है तथा नरक भूमि रूप तालाब में अथवा नरक रूप गुफा में उतरने के लिए सरल सीढ़ी है। प्राणीवध में आसक्त जीव इस जन्म में ही बार-बार वध बंधन जेल, धन का नाश, पीड़ा और मरण को प्राप्त करता है । जीव दया के बिना दीक्षा, देव पूजा, दान, ध्यान, तप, विनय, आदि सर्व क्रिया अनुष्ठान निरर्थक है। यदि गौहत्या, ब्रह्म हत्या और स्त्री हत्या को निवृत्ति से परम धर्म होता है, तो सर्व जीवों की रक्षा से वह धर्म उससे भो उत्कृष्ट कैसे न हो ? होता ही है ! इस संसार चक्र में परिभ्रमण करते जीव ने सर्व जीवों के साथ सभी प्रकार सम्बन्ध किए हैं, इसलिए जीवों को मारने वाला तत्त्व से अपने सर्व सगे सम्बन्धियों को मारता है। जो एक भी जीव को मारता है वह करोड़ों जन्म तक अनेक बार मरता हुआ अनेक प्रकार से मरता है। चार गति में रहे जीव को जितने दुःख उत्पन्न होते हैं वे सभी हिंसा के फल का कारण हैं, इसे सम्यग् प्रकार समझो। जीव वध करने वाला वह स्वयं अपने आपका वध करता है और जीव दया वह अपने आप पर दया करता है इसलिए आत्मार्थी जीव ने सर्व जीवों की सर्वथा हिंसा का त्याग किया।
विविध योनियों में रहे मरण के दुःख से पीड़ित जीवों को देखकर बुद्धिमान उसको नहीं मारे, केवल सर्व जीव को अपने समान देखे। कांटे लग जाने