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श्री संवेग रंगशाला
का सर्वथा त्याग किया है, ऐसा जान । झूठ बोलने से पाप, समूह के भार से जीव, जैसे लोहे का गोला पानी में डूब जाता है, वैसे नरक में डूब जाता है इसलिए असत्य को छोड़कर हमेशा सत्य ही बोलना चाहिए, क्योंकि वह सत्य स्वर्ग में और मोक्ष में ले जाने के लिए मनोहर विमान है । जो वचन कीर्ति - कारक, धर्मकारक, नरक के द्वार को बन्द करने वाला, संकल के समान, सुख अथवा पुण्य का निधान, गुण को प्रगट करने वाला तेजस्वी दीपक, शिष्ट पुरुषों का इष्ट और मधुर हो, स्व और पर पीड़ा का नाशक, बुद्धि द्वारा विचारा हुआ, प्रकृति से ही सौम्य - शीतल, निष्पाप और कार्य सफल है, उस वचन को
सत्य जानना ।
इस प्रकार सत्य वचन रूपी मन्त्र से मन्त्रित विष भी मारने में समर्थ नहीं हो सकता है और धीर पुरुषों के सत्य वचन से श्राप देने पर अग्नि भी नहीं जला सकती है। उल्टे मार्ग में जाती पर्वत की नदी को भी निश्चय सत्य वचन से रोक सकते हैं और सत्य से श्राप किये हुये सर्प भी किल के समान स्थिर हो जाता है । सत्य से स्तम्भित हुआ तेजस्वी शस्त्रों के समूह ' भी प्रभाव रहित बन जाता है और दिव्य प्रभाव पड़ने पर भी सत्य वचन सुनने मात्र से जल्दी मनुष्य शुद्ध होता है । सत्यवादी धीर पुरुष सत्य वचन से देवों को भी वश करते हैं और सत्य से पराभव हुए डाकिनी, पिशाच और भूत-प्रेत भी छल कपट नहीं कर सकते हैं । सत्य से इस जन्म में अभियोगिक देव पुण्य समूह का बन्धन करके अन्य जन्म में महर्द्धिक देव बनकर उत्तम मनुष्यत्व को प्राप्त करता है और वहाँ आदेय नाम कर्म वाला, वह सर्वत्र मान्य वचन वाला, तेजस्वी, प्रकृति से सौम्य, देखते ही नेत्रों को सुखकारी और स्मरण करते मन की प्रसन्नता प्राप्त कराने वाला, तथा बोलते समय कान और मन को दूध समान, मधु समान अथवा अमृत समान प्रिय और हितकारी बोलता है, इस तरह सत्य से पुरुष वाणी के गुण वाला बनता है । सत्य से मनुष्य जड़त्व, गूंगा, तुच्छ स्वर वाला, कौए के समान, अप्रिय स्वर वाला, मुख में रोगी और दुर्गन्ध युक्त मुख वाला नहीं है । परन्तु सत्य बोलने वाला मनुष्य सुखी, समाधि प्राप्त करने वाला, प्रमोद से आनन्द करने वाला, प्रीति परायण, प्रशंसनीय, शुभ प्रवृत्ति वाला, परिवार को प्रिय बनता है । तथा प्रथम पाप स्थानक के प्रतिपक्ष से होने वाले जो गुण बतलाये हैं उस गुण से युक्त और इस गुण से युक्त बनता है । इस तरह इसके प्रभाव से जीव श्रेष्ठ कल्याण की परम्परा को प्राप्त करता है और पूज्य बनता है, अतः यह सत्य वाणी विजयी बनती है । सत्य में तप, सत्य में संयम और सत्य में ही सर्व गुण रहे हैं । अति दृढ़ संयमी