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श्री संवेगरंगशाला
फिर इधर-उधर घूमते किसी तरह मैल दूर होने से एक सिक्के का सुवर्ण प्रगट हुआ इससे राजपुरुषों ने उनको पकड़कर राजा को सौंपा, राजा ने पूछा कि अन्य सिक्के कहाँ बेचे हैं उसे कहो ! उन्होंने कहा- हे राजन् ! दो सिक्के जिनदास सेठ को दिये हैं और शेष सब नन्द व्यापारी को दिये हैं । इस तरह कहने पर राजा ने जिनदास को बुलाकर पूछा, उसने अपना सारा वृत्तान्त यथास्थित सुनाया । तब राजा ने सन्मान करके उसे अपने घर भेजा । इधर नन्द अपनी दुकान पर आया और पुत्र को पूछा कि - अरे ! क्यों सिक्के लिये या नहीं लिए ? उसने कहा - पिताजी ! बहुत मूल्य होने से वह नहीं लिए । इससे छाती कूट ली— 'हाय ! मैं लूटा गया ।' ऐसा बोलते नन्द ने "इन पैरों का दोष है कि जिसके द्वारा मैं पर घर गया ।" ऐसा मानकर सिक्कों से अपने पैरों को तोड़ा। उसके बाद राजा ने उसको वध करने की आज्ञा दी और उसका सर्व धन लूट लिया, इत्यादि इच्छा की विरति बिना के जीवों को बहुत दोष लगते हैं, इसलिये हे तपस्वी ! परिग्रह में मन को जरा भी लगाना नहीं । देखते ही क्षण में नाश होने वाला वह है इसलिए धीर पुरुष उसकी इच्छा कैसे करे ? इस तरह परिग्रह विषयक पांचवाँ पाप स्थानक कहा। अब क्रोध का स्वरूप कहते हैं । वह इस प्रकार है
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६. क्रोध पाप स्थानक द्वार : - दुर्गंध वस्तु में से उत्पन्न हुआ दुर्गंधमय क्रोध किसको उद्वेग नहीं होता है । इसलिए ही पण्डितों ने इसे दूर से ही त्याग किया है । और महान क्रोधाग्नि की ज्वालाओं के समूह से अधिकतया ग्रसित - जला हुआ, अविवेकी पुरुष तत्त्व से अपने को और पर को नहीं जान सकता । afe जहाँ होती है वहाँ ईंधन को प्रथम जलाती है वैसे क्रोध उत्पन्न होते ही जिसमें उत्पन्न हुआ उसी पुरुष को प्रथम जलाता है । क्रोध करने वाले को क्रोध अवश्य जलाता है, दूसरे को जलाने में एकान्त नहीं है उसे जलाये अथवा नहीं भी जलाये । अथवा अग्नि भी अपने उत्पत्ति स्थान को जलाती है दूसरे को जलाए वह नियम नहीं है । अथवा जो अपने आश्रय वाले को अवश्य जलाता है, वह अपनी शक्ति के योग से क्षीण हुआ महापापी कोध दूसरे की ओर फेंकता है और क्या कर सकता है ? क्रोध रूप कलह से कलुषित मन वाला जिस पुरुष का दिन जाता है, उस नित्य क्रोधी मनुष्य का इस जन्म या पर - जन्म में सुख की प्राप्ति कैसे कर सकता है ? वैरी भी निश्चय एक ही जन्म में अपकार करता है और क्रोध दोनों जन्मों में महाभयंकर अपकारी होता है । जिस कार्य को उपशम वाला सिद्ध करता है, उस कार्य को क्रोधी