________________
३६२
श्री संवेगरंगशाला त्याग करना चाहिये, परधन त्याग से दुर्गति का भी सर्वथा त्याग होता है। जैसे लोहे का गोला जल में डूबता है वैसे अदत्तादान से उपार्जन किया पाप समूह के भार से भारी बना जीव नरक में पड़ता है।
अदत्तादान का ऐसा भयंकर विपाक वाला फल जानकर आत्महित में स्थिर चित्त वाले को इसका नियम लेना चाहिए। जो जीव परधन को लेने की बुद्धि को भी सर्वथा त्याग करता है वह ऊपर कहे उन सर्व दोषों को दाहिने पैर से अल्प प्रयास द्वारा खत्म करता है, इसके अतिरिक्त उत्तम देवलोक प्राप्त करता है, और वहाँ से उत्तम कुल में जन्म लेकर तथा शुद्ध धर्म को प्राप्त कर आत्महित में प्रवृत्ति करता है। मणि, सुवर्ण, रत्न आदि धन समूह से भरे हुए कूल में मनुष्य जन्म को प्राप्त करता है और चोरी के त्याग की प्रतिज्ञा से पुण्यानुबंधी पुण्य वाला धन्य पुरुष बनता है। उसका धन गाँव, नगर, क्षेत्र, खड्डे अथवा अरण्य या घर में पड़ा हो, मार्ग में पड़ा हो, जमीन में गाड़ा हो अथवा किसी स्थान पर गुप्त रखा हो, या प्रगट रूप में रखा हो, अथवा ऐसे ही कहीं पर पड़ा हो, कहीं भूल गये हों अथवा ब्याज में रखा हो, और यदि फैक भी दिया हो फिर भी वह धन दिन अथवा रात में भी नष्ट नहीं होता है, परन्तु अधिक होता है। अधिक क्या कहें ? सचित्त, अचित्त या मिश्र कुछ भी वह धन धान्यादि दास, दासी, मनुष्य, पशु, पक्षी आदि इधर-उधर किसी स्थान पर रहा हो उसे ग्रहण नहीं करता है। देश, नगर, गाँव का भयंकर नाश होता है, परन्तु उसका नाश नहीं होता है । और बिना प्रयत्न से और इच्छा अनुसार मिले हुये धन का वह स्वामी और उसका भोगता होता है तथा उसके अनर्थों का क्षय करता है । वृद्धा के घर में भोजन के लिए टोली आई थी उसने घर के धन को देखकर हरण करने वाले विलासियों के समान तीसरे पाप स्थानक में आसक्त जीव इस जन्म में बन्धन आदि कष्टों को प्राप्त करता है और जो इसका नियम करता है वह अपने शुद्ध स्वभाव से ही उस समूह में रहते हुए श्रावक पुत्र के समान कभी भी दोष-दुःख के स्थान को प्राप्त नहीं करता है। इसका प्रबन्ध इस प्रकार है :
श्रावक पुत्र और टोली का दृष्टान्त वसन्तपुर नगर में वसंतसेना नाम की एक वृद्धा रहती थी। उसने बड़े महोत्सव से नगर के सभी जनों को भोजन करवाया। उस नगर में एक विलासी दुष्ट मण्डली-टोली रहती थी। उन्होंने वृद्धा के घर धन देखकर रात्री के समय लूटने लगे, केवल उस मण्डली में श्रावक पुत्र वसुदत्त भी था, उसने चोरी