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श्री संवेगरंगशाला भी सहन करने में असमर्थ हो तो संथारे में रखकर ही उसे उठाना फेरना आदि करना। २. चार मुनि अन्दर के द्वार में अच्छी तरह उपयोगपूर्वक बैठे और ख्याल रखे। और ३. चार मुनि प्रतिलेखनापूर्वक संथारा बिछाए । ४. चार मुनि बारी-बारी अस्तो व्यस्त नहीं बोले, इस तरह एक दूसरे अक्षरों को मिलाए बिना, अस्खलित कम अधिक बिना विलम्ब से नहीं हो, इस तरह शीघ्रता भी नहीं करना, एकत्रित उच्चारण से नहीं, वैसे एक ही उच्चारण बार-बार नहीं करना, परन्तु मधुर स्वर पूर्वक स्पष्ट समझ में आए इस तरह, बहुत बड़ी आवाज नहीं, अति मन्द स्वर से भी नहीं, असत्य अथवा निष्फल भी नहीं बोले, प्रतिध्वनि या गूंज न हो, इस तरह शुद्ध संदेह रहित सुनने वाले को अर्थ का निश्चय हो, इस तरह पदच्छेदनपूर्वक बोले अथवा क्षपक मुनि के हृदय को अनुकूल हो, इस तरह स्नेहपूर्वक मीठे शब्दों से और पथ्य भोजन के समान आनन्दजनक धर्मकथा को चार मुनि उस क्षपक को सम्यग् रूप में कहे। उसमें क्षपक मुनि को वह धर्मकथा कहना कि जिसको सम्यग् सुनकर वह आतरौद्र रूपी अपध्यान को छोड़कर संवेग निर्वेद को प्राप्त करे। ५. चार वादी मुनि के बाद के लिये आने वाले प्रतिवादियों को बोलने से रोके अथवा समझाएँ । ६. तपस्वी के मुख्य द्वार पर चार मुनि उपयोगपूर्वक बैठे । ७. लब्धि वाले कपट बिना के चार मुनि उद्वेग बिना उत्साहपूर्वक क्षपक मुनि को रुचिकर दोष रहित आहार खोज कर लाएँ। ८. चार मुनि ग्लान के योग्य पानी लाकर दें। ६. चार महामुनि क्षपक मुनि की बड़ी नीति को परठे। १०. चार मुनि उसके कफ की कूण्डी, प्याला आदि को विधिपूर्वक परठे। ११. श्रोताओं को धर्मकथा करने वाले चार गीतार्थ बाहर बैठे । १२. सहस्र मल्ल के समान चार मुनि तपस्वी मुनि के उपद्रव आदि से रक्षण करते चार दिशा में रहे।
___ इस तरह अड़तालीस निर्यामक क्षपक मुनि को निर्यामणा करानी चाहिए। उसमें भी भरत, ऐरावत क्षेत्रों में जब ऐसा काल हो, तब उस काल के अनुरूप अड़तालीस निर्यामक भी उसी तरह होते हैं, और काल के अनुसार इतने मुनियों का अभाव में क्रमशः चार-चार कम करना, जघन्य से चार अथवा दो भी निर्यामक होते हैं। कहा है कि 'भरत और ऐरावत क्षेत्र में जब जैसा काल हो, तब उस काल अनुरूप निर्यामक भी जघन्य से दो होते हैं।' उसमें एक सदा पास में रहकर अप्रमत्त भाव में क्षपक मुनि की सार सम्भाल रखे और दूसरा प्रयत्नपूर्वक साथ के साधु का तथा अपना उचित निर्दोष आहारादि खोजकर ले आएं। परन्तु यदि किसी कारण से एक ही निर्यामक हो तो वह अपने लिए भी भिक्षा भ्रमण आदि नहीं कर सकता है, इसलिए