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श्री संवेगरंगशाला शोक के भार से अति ग्लान और अफसोस से भरे हये गले वाला तथा सतत् गिरते हुए आँसू के बिन्दु के समूह से भरा नेत्र वाले शिष्य सूरि जी के चरणकमल रूपी गोद में मस्तक रखकर गद्गद् स्वर से कहे कि हे भगवन्त ! कान का शल्य समान और अत्यन्त दुःसह आप यह क्या बोल रहे हो ? जो कि हम सर्वया आपका ऐसा उपकार करने वाले हैं, ऐसे बुद्धिमान नहीं हैं, ऐसे गीतार्थ नहीं हैं, आपके चरण-कमल की सेवा के योग्य नहीं है तथा अन्त समय की कही हुई संलेखना आदि की विधि में कुशल भी नहीं हैं, फिर भी हे भगवंत ! एकान्त में परहित में तत्पर एक चित्त वाले, पर को अनुग्रह करने में श्रेष्ठ
और प्रार्थना का भंग नहीं करने वाले, आप श्री हमें छोड़ देना वह उचित नहीं है। क्योंकि आज भी बीच में बैठे आपके चरण-कमल से (आप श्री द्वारा) यह गच्छ शोभा दे रहा है। इसलिए हमारे सुख के लिए कालचक्र गिरने के समान ऐसा वचन आपके बोलने से और चिन्तन करने से क्या लाभ है ? शिष्यों के इस तरह कहने पर भी गुरू महाराज भी मधुर वाणी से कहते हैं कि :
श्री अरिहंत परमात्मा के वचनों से वासित बने हए और अपनी बुद्धिरूपी धन से योग्यायोग्य को समझने वाले, हे महानुभावों! तुम्हें मन से ऐसा चिन्तन करना भी योग्य नहीं है और बोलना तो सर्वथा योग्य नहीं है। कौन बुद्धिशाली उचित कार्य में भी रोके ? अथवा क्या श्री अरिहंत कथित शास्त्रों में इसकी अनुमति नहीं दी है ? अथवा पूर्व पुरुषों ने इसका आचरण नहीं किया ? क्या तुमने ऐसा किसी स्थान पर नहीं देखा ? और भयंकर वायु से आन्दोलित ध्वजापट समान चंचल मेरे इस जीवन को तुम नहीं देखते ! कि जिससे अमर्यादित अति असद् आग्रह के आधीन बनकर ऐसा बोल रहे हो ? अतः मेरे प्रस्तुत कार्य को सर्व प्रकार से भी प्रतिकूल नहीं बने। इत्यादि गुरूदेव की वाणी सुनकर शिष्यादि पुनः इस तरह उनको विनती करते हैं कि-हे भगवन्त ! यदि ऐसा ही है तो भी अन्य गच्छ में जाने से क्या प्रयोजन है ? यहाँ अपने गच्छ में ही इच्छित प्रयोजन की सिद्धि करो, क्योंकि यहाँ भी प्रस्तुत कार्य में समर्थ, भार को वहन करने वाला, महामति वाला, गीतार्थ, उत्साह में वृद्धि करने वाले, भैरव आदि के सामने आते भयों में भय रहित, संवेगी, क्षमा से सहन करने वाला और अति विनती ऐसे अनेक साधु हैं। इस तरह उत्तम साधुओं के कहने से किसी आचार्य महाराज के आगे कहते गुणदोष पक्ष को-लाभ-हानि का तारतम्य का बार-बार विचार करके वही इच्छित कार्य को करे और किसी अन्य आचार्य के द्वारा कही हुई विधि अनुसार