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श्री संवेगरंगशाला
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प्रकार पणिलेहना नहीं करने से बहुत दोष उत्पन्न होते हैं । अथवा किसी अन्य द्वारा उसे परिपूर्ण रूप में जानकर उसे स्वीकार करे अन्यथा स्वीकार नहीं करे । अतः उसके कल्याण, कुशलता और सुकाल में यदि भावि में व्याघात नहीं होने वाला है, ऐसा जानकर उसे स्वीकर करे अन्यथा राजा आदि के स्वरूप की पडिलेहणा (जानकारी) के बिना स्वीकार करने से हरिदत्त मुनि के समान आराधना में विघ्न भी आ सकता है। इस विषय पर कथा कहते हैं :
हरिदत्त मुनि का प्रबन्ध ___ शंखपुर नगर में सर्वत्र प्रसिद्धि को प्राप्त करने वाला महाबली और शत्रु समूह के विजेता शिवभद्र नामक राजा था और उसे अति मान्य वाला वेद आदि समस्त शास्त्रों में कुशल बुद्धि वाला मति सागर नाम का पुरोहित था। उसने राजा को विघ्नरहित राज्य के सुख के लिए दुर्गति का कारणभूत भी यज्ञ कार्यों में हमेशा के लिये लगा दिया। उसके बाद एक समय अनेक साधुओं के समूह के साथ में गुण शेखर नाम के आचार्य नगर के बाहर उद्यान में पधारे । उनको नमस्कार करने के लिए बाल, वृद्धों सहित नगर के मानव-जन महावैभवपूर्वक म्यान इत्यादि सहित वाहन में बैठकर वहाँ गये। उसी समय में उसी पुरोहित के साथ में राजा भी नगर के बाहर विभाग में वहीं घोड़ों को खिलाने लगा। उस समय कोलाहल पूर्वक राजा ने उस नगर के लोगों को आते-जाते देखकर पूछा कि क्या आज कोई महोत्सव है ? कि जिससे इस तरह अपने वैभव अनुसार श्रेष्ठ अलंकारों से युक्त शरीर वाले लोग यथेच्छ सर्वत्र घूम रहे हैं ? फिर परिवार के किसी व्यक्ति ने उसका रहस्य (कारण) कहा । इससे आश्चर्यचकित बना राजा उस उद्यान में गया और उस आचार्य श्री को वन्दन नमस्कार करके अपने योग्य स्थान पर बैठा। उसके बाद राजादि पर्षदा के अनुकूल आचार्य श्री ने भी मेघ गर्जना के समान गम्भीर शब्दों वाली वाणी से धर्म कथा प्रारम्भ की। जैसे कि हे राजन् ! सारे शास्त्रों का रहस्य भूत सर्व सुखकारी एक ही जीव दया, प्रशंसा करने योग्य है, जैसे रात्री चन्द्रमा के बिना नहीं शोभती वैसे ही धर्म तप, नियम के समूह से युक्त हो तो भी इस दया के बिना लेशमात्र भी नहीं शोभता है । इस दया में रंगे हुये मन वाले गृहस्थ भी देवलोक में उत्पन्न हुए हैं और इससे विमुख मुनि ने भी अत्यन्त दुःखदायी नरक को प्राप्त किया है। जो अखट विशाल और दीर्घ आयुष्य की इच्छा करता है वह कल्पवृक्ष के महान लता सदृश जीव दया का पालन करते हैं। उत्तम मुनियों के द्वारा कही हुई और विशिष्ट युक्ति सहित होने पर भी