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श्री संवेगरंगशाला श्री जैन मन्दिर अथवा साधु की बस्ती में भी वृद्ध साध्विों के साथ जाना। इस तरह आचार्य श्री प्रत्येक वर्ग को अलग-अलग हित-शिक्षा देकर उनके ही समक्ष सर्व को साधारण हित-शिक्षा दें कि-आज्ञा पालन में सर्व रक्त होने से तुमको बाल, वृद्धों से युक्त गच्छ में भक्ति और शक्ति पूर्वक परस्पर वैयावच्य में सदा उद्यमशील रहना। क्योंकि-स्वाध्याय, तप आदि सर्व में उसे मुख्य कहा है, सर्व गुण प्रतिपाती हैं जबकि वैयावच्य अप्रतिपाती है। भरत बाहुबली
और दशार कुल की वृद्धि करने वाला वसुदेव ये वैयावच्य के उदाहरण हैं। इसलिए साधुओं को सर्व प्रकार की सेवा से संतुष्ट करना चाहिए । वे दृष्टान्त इस प्रकार से हैं :
वैयावच्य की महिमा :-युद्ध करने में तत्पर, शत्रुओं का पराभव करने वाला, जो प्रखण्ड राजाओं के समूह का पराभव करके छह खण्ड पृथ्वी मण्डल को जीतने में समर्थ प्रताप वाला, अति रूपवती श्रेष्ठ चौसठ हजार रानियों से अत्यन्त मनोहर, अनेक हाथी, घोड़े, पैदल तथा रथ युक्त, नौ निधान वाला, आँख ऊँची करने मात्र से सामन्त राजा नमने वाले, अपने स्वार्थ की अपेक्षा बिना ही सहायता करते यक्षों वाला, जो चक्रवर्ती भारत में, पूर्व में भरत चक्री ने प्राप्त किया था वह पूर्वजन्म साधु महाराज की वैयावच्य करने का फल है। और प्रबल भुजा के बल से पृथ्वी के भार को वहन करने वाले, अनेक युद्धों में शरद के चन्द्र समान निर्मल यश को प्राप्त करने वाले और शत्रओं के मस्तक को छेदन में निर्दय पराक्रम वाला, चक्र को हाथ में धारण करने वाला, चक्री होने पर भी भरत को प्रचण्ड भुजा बल के निधान रूप बाहुबली का बल देख कर 'क्या यह बाहुबली चक्रवर्ती है' ? ऐसा संशय उत्पन्न हुआ था और जिसने दृष्टि युद्ध आदि युद्धों से देवों के समक्ष लीलामात्र में हराया था, वह भी उत्तरोत्तर श्रेष्ठ फल देने में कल्पवृक्ष समान उत्तम साधुओं के योग्य वैयावच्य करने की यह सब महिमा है। जो अपने रूप की सुन्दरता से जग प्रसिद्ध कामदेव के अहंकार को जीतने वाले, दशार कुल रूपी कुमुद को विकसित करने में कौमुदी के चन्द्र समान और जहाँ तहाँ परिभ्रमण करते हुए भी वसुदेव को उस काल में ऊँचे स्तन वाली भाग से शोभती, नवयौवन से मनोहर, पूनम की रात्री के चन्द्र समान मुख वाली, काम से पीड़ित अंग वाली, अत्यन्त स्नेह वाली
और मृग समान नेत्र वाली, विद्याधरों की पूत्रियाँ 'मैं प्रथम-मैं प्रथम' ऐसा बोलती विवाह किया, वह भी सारा फल चिन्तामणी को जीतने वाला तपस्वी, नव दीक्षित, बाल, ग्लान आदि मुनियों की वैयावच्य करने का फल है ।