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श्री संवेगरंगशाला
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करते हैं वैसे अति क्रूर प्रमाद शत्रु के सुभटों के समूह से पराभूत हो गये और गुरू के अभाव में साधु के कर्त्तव्य में शिथिल बन गये तथा मन्त्र-तन्त्र कौतुक आदि में प्रवृत्ति करते अनेक अनर्थों के भागीदार बने।
___ इस कारण से आचार्य मध्यम गुण वाले को भी आचार्य पद स्थापन करके उसे गच्छ की अनुज्ञा देकर अनशन का प्रयत्न करना चाहिये। अन्यथा प्रवचन की निन्दा, धर्म का नाश, मोक्ष मार्ग का उच्छेद क्लेश-कर्म बन्धन और धर्म से विपरीत परिणाम आदि दोष लगते हैं। इस तरह कुगति रूपी अन्धकार का नाश करने में सूर्य के प्रकाश तुल्य और मरण के सामने विजय पताका की प्राप्ति कराने में सफल कारण रूप संवेगरंगशाला रूपी आराधना के दस अन्तर द्वार वाला दूसरा गण संक्रमण द्वार का दिशा नामक प्रथम अन्तर द्वार कहा है । अब इस तरह अपने पद पर शिष्य को स्थापन कर उसे गण- समुदाय की अनुज्ञा करने वाला, एकान्त निर्जरा की उपेक्षा वाला भी आचार्य को उसके अभाव में अति महान कल्याण रूपी लता वृद्धि को नहीं प्राप्त कर सकता है, उसे दुर्गति को नाश करने वाली क्षमापना कहलाती है।
दूसरा क्षामणा द्वार :-उसके बाद प्रशान्त चित्त वाले वे आचार्य भगवन्त, बाल, वृद्ध सहित अपना सर्व समुदाय को तथा तत्काल स्थापन किये नये आचार्य को बुलाकर मधुर वाणी से इस प्रकार कहे कि-'भो महानुभवों! साथ में रहने वालों को निश्चय सूक्ष्म या बादर कुछ भी अप्रीति हो।' इसलिए कदापि अशन, पान, वस्त्र, पात्र तथा पीठ या अन्य भी जो कोई धर्म का उपकार करने वाला धर्मोपकरण मुझे मिला हुआ हो, विद्यमान होने पर भी और कल्प्य होने पर भी मैंने नहीं दिया हो अथवा दूसरे देने वाले को किसी कारण से रोका हो। अथवा पूछने पर भी यदि अक्षर, पद, गाथा, अध्ययन आदि सूत्र का अध्ययन न करवाया हो, अथवा अच्छी तरह अर्थ या विस्तार से नहीं समझाया हो, अथवा ऋद्धि, रस और शांता गारव के वश होकर किसी कारण से, कुछ भी कठोर भाषा से, चिरकाल बार-बार प्रेरणा या तर्जना की हो। विनय से अति नम्र और गाढ़ राग के बन्धन से दृढ़, बन्धन से युक्त भी तुमको रागादि के वश होकर मैंने यदि किसी विषम दृष्टि से अविनीतादि रूप में देखा हो या मान्य किया हो, और सद्गुणों की प्राप्ति में भी उस समय यदि तुम्हारी उत्साह वृद्धि न की हो, उसे हे मुनि भगवन्तों ! शल्य और कषाय रहित होकर मैं तुम्हें खमाता हूँ। तथा हे देवानुप्रिय ! प्रिय हितकर को भी अप्रिय मानकर यदि इतने समय तक अस्थान में कारण बिना भी तुमको दुःखी किया हो तो भी