________________
श्री संवेगरंगशाला
१३२
को निगलते एक बड़े सर्प को देखकर, उस सर्प को भी तीक्ष्ण चोंच से निगलते मत्स्यभक्षी 'कुर कुर' शब्द बोलने वाला कुरर नामक पक्षी को देखकर, और करूण स्वर से रोते उस कुरर पक्षी को भी निगलते यम समान अजगर को देखकर, वह महात्मा विचार करेगा कि जैसे मेंढक को सर्प निगलता है वैसे ये पापी जीव को भयंकर राज्य के अधिकारी निगलते (दंड देते ) हैं, अधिकारी को भी कुरर पक्षी समान राजा दण्डित करता है और उस राजा को भी अजगर समान यमराज एक कौर बनाकर निगल जाता है । इस तरह हमेशा आई हुई आपत्तियाँ रूप दुःख से भरी हुई इस लोक में मनुष्य के मात्र भोगने की इच्छा करना वह खेदजनक महामोह की मूढ़ता है, इस तरह तीन लोक में जन्म मरण से मुक्त कोई नहीं है, फिर भी वैराग्य उत्पन्न नहीं करता । उन मनुष्यों की मूढ़ता भी खेदजनक है । ऐसा चिन्तन मनन कर राज्य को, देश को, अंतःपुर को और नगर को त्यागकर श्रमण-साधु होगा तथा शेष सर्व कर्म को खतम करके सिद्धि को प्राप्त करेगा । इस प्रकार निश्चय ही श्री अरिहंत भगवन्त की पूजा का ध्यान भी मोक्षदायी बनता है ।
इसीलिए यहाँ कहा कि - श्रावक अर्धमार्ग में किसी तीव्र आपत्ति के वश मृत्यु हो जाए फिर भी पूजा के ध्यान मात्र से भी तीर्थों की पूजा का फल प्राप्त करता है । इस तरह सम्यग् आलोचना के परिणाम वाले गुरु के पास जाने के लिए निकला हुआ भी यदि बीच में ही बीमार आदि कोई असुख का कारण हो जाए, तो भी वह आराधक होता है । तथा आलोचना के सम्यग् परिणाम वाला गुरुदेव पास जाते यदि वह बीच मार्ग में ही मर जाए तो भी आराधक होता है । इसी तरह गुरु के पास जाते हुए आलोचना के परिणाम वाले की यदि बीच में ही असुख - बिमारी आदि हो जाये अथवा मृत्यु हो जाये तो भी वह आराधक होता है । क्योंकि पाप शल्य का उद्धार करने की इच्छा वाला वह संवेग - निर्वेद तथा तीव्र श्रद्धा से पाप की शुद्धि के लिए गुरु के पास जाने से वह भाव से आराधक होता है । इस तरह आलोचना के परिणाम वाले गुरु महाराज के पास आते तपस्वी का भी वहाँ पहुँचने के पहले अपना अथवा गुरु का अमंगल हो जाये तो भी सम्यक् शुद्धि होती है । अथवा अनियत विहार से होने वाले गुण हैं, जैनागम में कहाँ हुआ प्रायः साधु और गृहस्थ के यह साधारण गुण सुनो !
अनियत विहार से गृहस्थ-साधु के साधारण गुण :- अनियत विहार करने से (१) दर्शन शुद्धि, (२) संवेग निर्वेद द्वारा धर्म में स्थिरीकरण,