________________
२००
श्री संवेगरंगशाला यदि स्वप्न में आलिंगन करते देखे, और अतीव नीच लोग बुलाए और उनके पास जाए अथवा जो हाथी से जुड़ा वाहन द्वारा प्रेत-मृतक भी अथवा मुंडित किसी साधु के साथ खेजड़ा वृक्ष या नीम के वृक्षों से विषय मार्ग वाले जंगल में प्रवेश करे तो वह स्वस्थ भी निश्चय मत्यु प्राप्त करता है और रोगी तो अवश्य मर जाता है। वह इस प्रकार से-ऊपर कहे अनुसार अति भयंकर स्वप्नों को देखकर रोगी अवश्य मरता है और स्वस्थ मृत्यु के संदेह प्राप्त कर जीता रहता है।
स्वप्न सात प्रकार का होता है-(१) देखा हुआ, (२) सुना हुआ, (३) अनुभव किया हुआ, (४) वातपित्त आदि दोष के कारण से, (५) कल्पित भाव का, (६) इच्छित भावों, और (७) कर्म उदय के कारण से आता है। इसमें प्रथम पाँच प्रकार के स्वप्न निष्फल कहे हैं और अन्तिम दो प्रकार के जो स्वप्न शुभाशुभ का फल सूचक जानना। उसमें जो स्वप्न अति लम्बा अथवा अति छोटा हो यदि देखते ही नाश हो जाए और जो कभी अति प्रथम रात्री देखा हो वह स्वप्न लम्बे समय में अथवा तुच्छ फल को देने वाला होता है और जो अति प्रभात में देखता हो वह उसी दिन अथवा महान् फल को देने वाला होता है। और अन्य ऐसा कहते हैं कि रात्री के प्रथम पहर में देखा हुआ स्वप्न एक वर्ष में, दूसरे पहर में देखा हुआ तीन महीने में, तीसरे पहर में देखा हुआ दो महीने में, चौथे पहर में देखा हुआ एक महीने में, और प्रभात काल में देखा हुआ स्वप्न दस अथवा सात दिन में फल देता है । यदि प्रथम अनिष्ट स्वप्न को देखकर बाद में इष्ट को देखे तो उसका शुभफल ही होता है और इसी तरह शुभ स्वप्न देखकर फिर अशुभ स्वप्न देखे तो अनिष्ट फल होता है। तथा श्री जैन प्रतिमा के पूजन से श्री पंच परमेष्ठि नमस्कार महामन्त्र का स्मरण करने से तथा तप संयमदान नियम आदि धर्म अनुष्ठान करने से पाप स्वप्न भी मन्द फल वाला हो जाता है। इस तरह से स्वप्न द्वार को कहा है।
___& रिष्ट द्वार :-अब रिष्ट अर्थात् अमंगल द्वार को कहते हैं, क्योंकि अमंगल के बिना मृत्यु नहीं होती है और अमंगल देखने के पश्चात् जीवन टिकता नहीं है। इसलिए आराधक वर्ग को सद्गुरू के उपदेशानुसार सर्व प्रयत्न से अमंगल को हमेशा अच्छी तरह देखना चाहिए । निमित्त बिना भी तर्क रहित भी पुरुष को जो प्रकृति के विकार का सहसा अनुभव होता है उसे यहाँ पर रिष्ट कहा है । अचानक जिसका पैर कीचड़ या रेती आदि में अथवा आगे-पीछे अपूर्ण दिखाई दे, वह आठ महीने भी जीता नहीं रह सकता है। घी के पात में प्रतिबिम्बित् हुआ सूर्य का बिम्ब देखते बीमार को यदि वह पूर्व दिशा खण्डित