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श्री संवेगरंगशाला
२३१ अनिष्टों को नाश करने में समर्थ है। अथवा एक अग्नि का कण क्या ईंधन के समूह को नहीं जलाता ? यह पण्डित मरण जीवों का हित करने में पिता, माता अथवा बन्धु वर्ग समान है और रणभूमि में सुभट के समान समर्थ है। कुगति के द्वार को बन्द करने वाला, सुगति रूपी नगर के द्वार को खोलने वाला, और पाप रज का नाश करने वाला, पण्डित मरण जगत में विजयी रहो। अद्यम पुरुषों को दुर्लभ और उत्तम पुरुषों के आराधना करने योग्य, उत्तम फल को देने वाला जो पण्डित मरण है, वह जगत में विजयी रहे। जो इच्छने योग्य है और जो प्रशंसनीय भी अति दुर्लभ है, उसे भी प्राप्त करने में समर्थ पण्डित मरण जगत में विजयी रहे । चिन्तामणी, कामधेनु और कल्पवृक्ष को भी निश्चय जो असाध्य है, उसे प्राप्त करने में समर्थ पण्डित मरण जगत में विजयी रहे। एक ही पण्डित मरण अनेक सैंकड़ों जन्मों का छेदन करता है, इसलिए उसी मरण से मरना चाहिए कि जिसके मरने से मरणा अच्छा है, वह सदा के लिये अजर अमर हो जाता है । यदि मरने का भय है तो पण्डित मरण से मरना चाहिए। क्योंकि एक पण्डित मरण अन्य सभी मरणों का नाश करता है। जिसका आचरण कर उत्तम धैर्य वाला पुरुष सर्व कर्मों का क्षय करता है, उस पण्डित मरण के गुण समूह को सम्पूर्ण वर्णन करने में कौन समर्थ है ? इस तरह पापरूपी अग्नि का नाश करने में जल के समूह रूप संवेगरंगशाला नाम की आराधना के मूल परिकर्म विधि नामक द्वार में कहे हुए पन्द्रह अन्तर द्वारों में क्रमशः यह बारहवाँ अधिगत मरण नाम का प्रतिद्वार कहा है । यह अधिगत मरण को स्वीकार करने पर भी श्रेणी बिना जीव आराधना में आरूढ़ होने अर्थात् ऊँचे गुण स्थान के चढ़ने में समर्थ नहीं होता है । अतः अब श्रेणी द्वार को कहते हैं।
तेहरवाँ श्रेणी द्वार :-यह द्रव्य और भाव से दो प्रकार की श्रेणी है। इसमें ऊँचे स्थान पर चढ़ने के लिए सोपान आदि द्रव्य श्रेणी जानना। और संयम स्थानों की लेश्या और स्थिति की तार तम्यता वाला शुद्धतर केवल ज्ञान की प्राप्ति तक प्राप्त करना या अनुभव करना उसे भाव श्रेणी जानना। वह इस तरह-जैसे महल पर चढ़ने वाले को द्रव्य श्रेणीरूप सीढ़ी होती है, वैसे ही ऊपर से ऊपर के गुण स्थानक को प्राप्त करने वाले को भाव श्रेणी रूपी सीढ़ी होती है। इस भाव श्रेणी के ऊपर चढ़ा हुआ उद्गगमादि दोषों से दूषित वसति का और उपाधि का त्याग करके निश्चित संयम में सम्यग् विचरण करता है। वह आचार्य के साथ आलाप-सलाप करता है और कार्य पड़ने पर शेष साधूओं के साथ बोलता है, उसे मिथ्या दृष्टि लोगों के साथ मौन और समकित दृष्टि