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श्री संवेगरंगशाला
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उसमें इतने घर में अथवा अमुक घरों में ग्रहण करूँगा इत्यादि क्षेत्र के कारण नियम लेना वह क्षेत्र अभिग्रह जानना । गौचरी भूमि के शास्त्रों में आठ भेद कहे हैं-(१) ऋजुगति, (२) गत्वा प्रत्यागति, (३) गौमूत्रिका, (४) पतंग वीथि, (५) पेटा, (६) अर्द्ध पेटा, (७) अभ्यन्तर शंबूका, और (८) बाह्य शंबूका । काल अभिग्रह में आदि, मध्य और अन्तः काल यह तीन प्रकार का होता है। उसमें भिक्षा काल होने के पूर्व में जाना वह प्रथम, भिक्षा काल के बीच जाना वह दूसरा, और भिक्षा काल पूर्ण के बाद जाना वह तीसरा काल जानना। माँगे बिना दे उसे ही लेना, ऐसा अभिग्रह वाले को सूक्ष्म भी अप्रीति किसी को न हो, इस आशय से भिक्षा काल के पूर्व में या बाद में भिक्षा के लिये जाना, भिक्षा काल में नहीं जाना, वह काल अभिग्रह जानना । और अमुक अवस्था में रहा हुआ आदमी भिक्षा दे तभी लूँगा, अन्यथा नहीं लेने वाला मुनि निश्चय भाव अभिग्रह वाला होता है, तथा गीत गाते, रोता, बैठे-बैठे, आहार देवे, अथवा वापिस जाते, सन्मुख आते, उल्टे मुख करके आहार दे, अथवा अहंकार धारण किया हो तो या नहीं नहीं धारण किये हो, इस तरह अमुक अवस्था में रहे हुये आहार देवे तो लेना अन्यथा नहीं लेना इत्यादि अभिग्रह को भाव अभिग्रह कहा है। इस तरह वृत्ति संक्षेप के लिए विविध अभिग्रह को धारण करता है। अब रस त्याग कहते हैं।
___ रस त्याग :-दूध, दही, घी, तेल आदि रसों को विगई अर्थात् विकृति कहते हैं, उसके बिना यदि संयम निर्वाह हो सके तो उसका त्याग करना वह रस त्याग जानना । क्योंकि-उन विगइयों को दुर्गति का मूल कहा है, माखन, मांस, मदिरा और मद यह चार महा विगई हैं। यह आसक्ति, अब्रह्म, अहंकार और असंयम को करने वाली हैं। पूर्व में श्री जैनाज्ञा के अभिलाषी, पापभीरू, और तप समाधि की इच्छा वाले महान् ऋषियों ने उन्होंने जावज्जीवन तक त्याग किया है । दूध, दही, घी, तेल, गुड़, कड़ा-पकवान विगई को तया और भी स्वादिष्ट-विकारी नमक, लहसुन आदि त्याग करना चाहिए। क्योंकि उससे परिणाम में विकार करने वाला मोह का उदय होता है । जब मोह का उदय होता है, तब मन का विजय करने में अति तत्पर भी जीव नहीं करने योग्य कार्य भी कर बैठता है । मोह यह दावानल समान है, जब मोह दावानल में जलेगा, तब जलते रहते हुये भी कौन बुझाने में उपयोगी हो सकेगा? अर्थात् जब मोह का साम्राज्य होगा, तब तुझे कोई श्रेष्ठ व्यक्ति भी समझाने में असमर्थ बनेगा । इसलिए मोह का मूलभूत रस का त्याग करे। अब काया क्लेश को कहते हैं ।