________________
श्री संवेगरंगशाला
२५१ करे । इन्द्रिय को शब्दादि कोई ऐसा विषय नहीं है कि विविध विषय में प्रेमी और हमेशा अतृप्त रहने वाली इन्द्रिय जिसे भोग कर तृप्ति प्राप्त कर सके। और विष के समान इन विषयों में एक-एक विषय भी संयमरूपी आत्मा का घात करने में समर्थ है तो यदि पाँचों का एक ही साथ भोग करे तो उसकी कुशलता कैसे रह सकती है ? जैसे निरंकुश घोड़ों से सारथी को संग्राम भूमि में निश्चय ही विडम्बना प्राप्त करता है, वैसे ही निरंकुश इन्द्रियों से भी इस जन्म, परजन्म में आत्मा का अनर्थ-अहित प्राप्त करता है। महापुरुषों ने सेवन किया मार्ग से भ्रष्ग हुआ । इन्द्रिय निग्रह नहीं करने वाला इस संसार में दारूण दुःख को देने वाले अन्य भी अनेक प्रकार के दोष होते हैं। इत्यादि अति दुःख के विपाक का अपनी बुद्धि से सम्यग् विचार करके धीर पुरुष को विषयों में रसिक इन्द्रियों की संलीनता करनी चाहिये । और उस संलीनता का इष्ट-अनिष्ट विषयों में साम्य भाव-वैराग्य भाव से राग-द्वेष के समय को छोड़ने योग्य जानना। तथा उस-उस विषयों को सुनकर, देखकर, सेवन कर, सूंघकर और स्पर्श करके भी जिसको रति या अरति नहीं होना उसे इन्द्रिय संलीनता कहते हैं। इसलिए विषयों रूपी गाढ़ जंगल में निरंकुश जहाँ-तहाँ परिभ्रमण करती इन्द्रिय रूपी हाथी को ज्ञान रूपी अंकुश से वश करना चाहिये । अब मन संलीनता कहते हैं। ___इसी तरह धीर पुरुष बुद्धि बल से मन रूपी हाथी को भी वैसे किसी उत्तम उपाय से वश करे कि जिससे शत्र पक्ष-मोह को जीतकर आराधना रूपी विजय ध्वजा को प्राप्त करे। इसी प्रकार शत्र वेग के समान कषायों को
और योगों के विस्तार वेग को भी रोककर बुद्धिमान उसकी भी निष्पाप संलीनता करे। इस तरह सम्यग व्यापार में प्रवृत्ति करने वाला, प्रशस्त योग से संलीनता को प्राप्त करने वाला, पाँच समिति से समित, और तीन गुप्ति से गुप्त बना मुनि आत्महित में तत्पर बनता है। असंयमी जीव अति लम्बे काल में जो कर्मों को खत्म करते हैं उसे संयत तपस्वी अन्त मुहूर्त में खत्म करते हैं। वह तप भी ऐसा करना कि जिससे मन अनिष्ट का चिन्तन न करे, संयम योगों की हानि न हो और मन की शान्ति वाला हो । द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव को और धातुओं (प्रकृति) को जानकर उसके अनुसार तप करे, कि जिससे वातपित्त, कफ क्षुब्ध न हो। अन्यथा ऐसे तप की शक्यता न हो, तो उदगम, उत्पादन और एषणा के दोष से रहित, प्रमाण अनुसार, हल्का विरस और रुखा आदि आहार पानी आदि से अपना निर्वाह करे और अनुक्रम से आहार को कम करते शरीर की संलीनता करे, उसमें तो शास्त्राज्ञों से आयंबिल को भी उत्कृष्ट