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श्री संवेग रंगशाला
मस्तक मुंडन के बाद नक्षत्र शोधन से क्या हित करेगा ? स्वयंभू ने कहा- हे पुत्री ! फिर भी तू इस शोक का रहस्य कह । इससे उसने वर का सारा वृत्तान्त सुनाया । उसे सुनकर उस पर वज्रघात हो गया हो अथवा घर का सर्व धन नष्ट हुआ हो या शरीर पर काजल लगाया हो इस तरह वह निस्तेज बन गया । विवाह का कार्य पूर्ण हुआ और स्वजन वर्ग भी अपने घर गये । फिर अन्य दिन ससुर के घर जाने का समय आया । पति के दुर्भाग्य रूपी तलवार से अत्यन्त टूटे हृदय वाली तथा पति से छूटने के लिए अन्य कोई भी उपाय नहीं मिलने से उसने मकान के शिखर पर चढ़कर मरने के लिये शीघ्र शरीर को गिरते छोड़ दिया और गिरकर वहीं मर गई ।
माता-पिता दौड़कर आए, स्वजन लोग भी उसी समय आये और उसके शरीर सत्कार आदि समग्र क्रिया की । उस मृत्यु का निमित्त भी उस नगर में सर्वत्र प्रसिद्ध हो गया, इससे गंगदत्त ने भी अपने दुर्भाग्य से अत्यन्त लज्जा को प्राप्त किया । केवल पिता ने उससे कहा कि - पुत्र ! इस विषय पर जरा भी खेद नहीं करना । मैं ऐसा प्रयत्न करूँगा कि जिससे तेरी दूसरी पत्नी होगी । उसके बाद उसका उसी प्रकार से बहुत धन खर्च कर अनेक प्रयत्नों द्वारा दूर नगर में रहने वाले वणिक पुत्री के साथ उसका विवाह किया । वह दूसरी पत्नी भी विवाह के बाद उसी तरह ही होने से अतिशय शोक प्राप्त कर और केवल पति के घर जाने के समय वह फाँसी लगाकर मर गई । इससे समग्र देश में भी दुःसह दुर्भाग्य के कलंक प्राप्त करते वह शोक के भार से व्याकुल शरीर वाला गंगदत्त ने विचार किया कि - पूर्व जन्म में पापी मैंने कौन-सा महान् पाप किया है कि जिसके प्रभाव से इस तरह मैं स्त्रियों के द्वेष का कारण रूप बनता हूँ ? वह महासत्त्वशाली सनत्कुमार आदि भगवन्त को धन्य है, कि जो दृढ़ स्नेह से शोभते भी चौसठ हजार स्त्रियों से युक्त महान् विशाल अंतःपुर को छोड़कर संयम मार्ग में चले थे । मैं तो निर्भागी वर्ग से अग्रेसर और स्वप्न में स्त्रियों का अनिष्ट करने वाला निर्भागी होने पर अहो ! महान् खेद है कि मृग का बच्चा जैसे मृगतृष्णा से दुःखी होता है, वैसे आशा बिना का निष्फल विषय तृष्णा से दुःखी हो रहा हूँ । अरे ! इससे ज्यादा सुख कहाँ मिलेगा ? इस तरह वह जब चिन्तन करता था, तब उसका पिता आया और उसने कहा कि - पुत्र ! निरर्थक शोक करना छोड़ दो और करने योग्य कार्य को करो ! अनेक जन्मों की परम्परा से बन्धन किये पापों का यह फैलाव है, तत्त्व से इस विषय में कोई दोष नहीं है । इसलिए हे पुत्र ! चलो, सुना है कि यहाँ पर भगवान श्री गुणसागर सूरि जी पधारे हैं, वहाँ जाकर और ज्ञान के रत्नों के