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श्री संवेगरंगशाला
२४७ यह संलेखना उत्कृष्ट और जघन्य इस तरह दो प्रकार की है। इसमें उत्कृष्ट बारह वर्ष की और जघन्य छह महीने की है। अथवा द्रव्य से और भाव से भी दो प्रकार की है। उसमें द्रव्य से शरीर की कृशता और भाव से इन्द्रियों की और कषायों की कृशता जानना अर्थात् हल्का करना। इसमें जो उत्कृष्ट संलेखनाकाल से बारह वर्ष कहे हैं, उसे द्रव्य से, सूत्रानुसार से यहाँ कुछ कहता हूँ-विविध अभिग्रह सहित चौथे भक्त छट्ठ, अट्ठम आदि विविध तप करके सर्व रस और कस वाली विगइयों से पारणा करते तपस्वी प्रथम चार वर्ष पूर्ण करे, पुनः चार वर्ष विचित्र-विविध तप से सम्पूर्ण करे, केवल उसमें विगई का उपयोग नहीं करे। उसके पश्चात् दो वर्ष पारणे में आयंबिल पूर्वक एकान्तर उपवास का तप करे, इस तरह वर्षे सम्पूर्ण हुए। ग्यारहवें वर्ष में पहले छह महीने में अति विकिष्ट अर्थात् चार उपवासादि उग्र तप न करे
और पारणे में परिमित आहार से आयंबिल करे । फिर अन्तिम छह महीने में अट्ठम, चार उपवास आदि विकिलष्ट तप को करके देह को टिकाने के पारणा
आयंबिल से इच्छानुसार भोजन करे। इस तरह ग्यारह वर्ष पूर्ण करके, बारहवाँ वर्ष कोटि सहित-लगातार आयंबिल तप करके पूर्ण करे, केवल बारहवें वर्ष के अन्तिम चार महीने में एकान्तर मुख में तेल का कुल्ला चिरकाल भरकर रखे, फिर उसके क्षार को प्याले परठ कर मुख साफ करे। ऐसा करने का क्या कारण है ? इसका उत्तर देते हैं-ऐसा करने से उसका मुख वायु से बन्ध नहीं होता है, मृत्युकाल में भी वह महात्मा स्वयं श्री नवकार महामन्त्र का स्मरण कष्ट बिना कर सकता है। यह मैंने द्रव्य से उत्कृष्ट संलेखना कही है, यही संलेखना यदि आयुष्य के अन्तिम छह महीने अथवा चार महीने करे तो वह जघन्य कहलाती है।
अपने-अपने विषय में आसक्त, इन्द्रिय, कषाय तथा योग का निग्रह करना उस संलेखना को ज्ञानी पुरुषों ने भाव संलेखना कहते हैं और उसमें साधुता के चिर उपासक ज्ञानी भगवन्तों ने विशेष क्रिया के आश्रित अनशन आदि तप द्वारा संलेखना इस प्रकार से कही है-(१) अनशन, (२) उनोदरिता, (३) वृत्ति संक्षेप. (४) रस त्याग, (५) काया क्लेश और विविक्त शय्या, इन्द्रिय तथा मन का निग्रह आदि, (६) संलीनता, इसका वर्णन आगे करते हैं ।
अनशन :-यह दो प्रकार का है-सर्व और देश । इसमें संलेखना करने वाला 'भवचरिम्' अर्थात् जीवन पर्यन्त का पच्यक्खान करता है उसे सर्व अनशन कहते हैं । यथाशक्ति उपवास आदि तप करना वह देश अनशन कहलाता है।