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श्री संवेगरंगशाला
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त्याग पर सहस्त्र मल्ल की कथा
शंखपुर नगर में न्याय, सत्य, शौर्य आदि गुणरूपी रत्नों का रत्नाकर के समान कनककेतु नामक राजा राज्य करता था । उसकी सेवा करने में कुशल गुणानुरागी और परम भक्ति वाला वीरसेन नाम का एक सेवक था । उसके विनय, पराक्रम आदि गुणों से प्रसन्न हुये राजा ने एक सौ गाँव की आजीविका देने को कहा, परन्तु वह नहीं चाहता था । एक समय में किल्ले के बल से अभिमानी चोरों का अधिपति अपने प्रदेश की सीमा में कालसेन नामक पल्लिपति रहता था । उसे अपने देश का हरण करते जानकर अत्यन्त क्रोधायमान होकर और भृकुटी को ऊँची चढ़ाकर भयंकर मुख वाले राजा ने कहा किअरे ! महान सामन्तो ! हे मन्त्रियों । सेनापतियों ! और हे श्रेष्ठ सुभटों ! क्या तुम्हारे में ऐसा कोई समर्थ है, जो कालसेन को जीत सके ? ऐसा कहने पर भी जब सामन्त आदि कोई भी नहीं बोले, तब वीरसेन ने कहा - 'हे देव ! मैं समर्थ हूँ !' तब राजा ने विलासी चमकती सुन्दर बरौनी वाली और विकसितकुमुद के समान शोभते प्रसन्न दृष्टि से सदभावपूर्वक उसके सामने देखा । और राजा ने प्रसन्न नेत्रों से अपने सामने देखने से अति प्रमोद भाव प्रगट हुआ और उसने पुन: कहा कि - हे देव ! 'आप मुझे अकेले ही भेजो तब राजा ने अपने हस्त कमल से ताम्बूल देकर उसे भेजा और सामन्त आदि लोग भी चुपचाप मौन रहे। फिर राजा को नमस्कार करके वह शीघ्र नगर में से निकल कर कालसेन पल्लिपति के पास पहुँचा । और उसने उसको कहा कि - तेरे प्रति राजा कनककेतु नाराज हुए हैं, इसलिए हे कालसेन ! अभी ही समग्र सेना सहित तू काल के मुख में प्रवेश करेगा । यह सुनकर भी दुर्धर गर्व से ऊँची गर्दन वाला कालसेन ने 'यह विचारा अकेला क्या करेगा ?' ऐसा मान कर उसकी अब गणना की । इससे कोपायमान हुआ यमराजा के कटाक्ष समान तीक्ष्ण धार वाली अपनी तलवार को घुमाता हुआ, अंग रक्षकों के समूह शस्त्र प्रहारों को कुछ भी नहीं गिनते और सभा सदस्यों को भेदन कर, युद्ध के सतत् अभ्यास से लड़ने में शूरवीर वह शीघ्र कालसेन के पास जाकर और केश से पकड़कर बोला--अरे रे ! हताश पुरुषों ! यदि अब इसके बाद मेरे ऊपर शस्त्र को चलायेगा तो तुम्हारा यह स्वामी निश्चित काल का कौर बनेगा । फिर 'जो इस वीरसेन को प्रहार करेगा वह मेरे जीव के ऊपर प्रहार करता है ।' ऐसा कहते कालसेन ने वीरसेन पर प्रहार करते पुरुषों को रोका ।
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इधर उस समय में ही उसके गुण से प्रसन्न हुआ कनककेतु के कहने से हाथी, घोड़े, रथ और यौद्धाओं से सम्पूर्ण चतुरंग सेना उसके पीछे आ पहुँची,