________________
श्री संवेगरंगशाला
२०५ अतीव उष्णता रहे, और पेट में अति शीतलता रहे, बाल को पूछने पर भी जिसको वेदना न हो उस मनुष्य को छह दिन में यमपुरी जाने वाला समझना। इस तरह रिष्ट द्वार कहा । अब जिस विशिष्ट धारणा-शक्ति वाला होता है, इस कारण से कुछ अल्पमात्र यन्त्र प्रयोग को कहता हूँ।
१०. यन्त्र द्वार :-अन्य व्याक्षेपों से रहित यन्त्र प्रयोग में एकाग्र चित्त वाला औपचारिक विधि करके प्रथम षट्कोण यन्त्र के मध्य में ॐकार सहित अधिगत मनुष्य को अपना नाम लिखना चाहिये। फिर यन्त्र के चारों कोणों में मानो अग्नि की सैंकड़ों ज्वालाओं से युक्त अग्नि मण्डल अर्थात् 'रकार' का स्थापन करना चाहिये, उसके बाद छहों कोणों के बाहरी भाग में छह स्वस्तिक लिखना चाहिये। फिर अनुसार सहित अकार आदि-अं, आं, इं, ई, उ, ऊँ, छह स्वरों से कोणों के बाह्य भागों को घेर लेना चाहिए। स्वस्तिक और स्वर के बीच-बीच में छह 'स्वा' अक्षर लिखे फिर चारों और विसर्ग सहित 'यकार' की स्थापना करना और उस यकार के चारों तरफ 'पायू' के पूर से आवृत्त संलग्न चार रेखाएँ खींचना। इस तरह बुद्धि में कल्पना कर या यन्त्र बनाकर पैर, हृदय, मस्तक और संधियों में स्थापन करना, फिर स्व, पर आयुष्य निर्णय करने के लिए, सूर्योदय के समय सूर्य की ओर पीठ करके और पश्चिम में मुख करके बैठना अपनी परछाई को अति निपुण रूप में अवलोकन करना चाहिए। यदि पूर्ण छाया दिखाई दे तो एक वर्ष तक मृत्यु का भय नहीं है, यदि कान दिखाई न दे तो बारह वर्ष तक जीता रहेगा, हाथ न दिखने से दस वर्ष में, यदि अंगुलियाँ न दिखे तो आठ वर्ष, कन्धा न दिखे तो सात वर्ष में, केश न दिखे तो पांच में, पार्श्व भाग न दिखे तो तीन वर्ष में, और नाक नहीं दिखे तो एक वर्ष में, मस्तक नहीं दिखे तो छह वर्ष में, यदि गर्दन नहीं दिखे तो एक महीने में, दाढ़ी नहीं दिखे तो छह महीने में, यदि आँखें न दिखे तो ग्यारह दिन और यदि हृदय में छिद्र दिखाई दे तो सात दिन में मृत्यु होगी और यदि दो छायाएँ दिखाई दें तो समझ लेना कि अब मृत्यु बहुत ही निकट है। (यही वर्णन योगशास्त्र पृ० ५ श्लोक २०८ से २१५ तक आया है।) स्नान करने के बाद यदि मनुष्य के कान आदि अंग शीघ्र सूख जाएँ तो पूर्व कहे यन्त्र प्रयोग की विधि अनुसार उतने वर्ष, महीने और दिनों में अवश्य मरता है । इस प्रकार आयुष्य को जानने के लिए उपायभूत यन्त्र प्रयोग द्वार कहा है अब ग्यारहवाँ अन्तिम विद्या द्वार कहते हैं।
११. विद्या द्वार :-अब विद्यामन्त्र से भी काल ज्ञान हो सकता है, इससे कुतूहल वाले आराधक अथवा अन्य पुरुष इसी तरह स्व और पर के