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श्री संवेगरंगशाला
चित्तता रखता है, उसे जगतगुरू ने असंगता कही है। ये पाँच गुणों का समुदाय वह उत्कृष्ट सामायिक है, अथवा उन सर्व का कारणभूत एक उदासीनता गुण प्राप्त करना वही परम सामायिक है। अधिक क्या कहें ? सावधयोगों का त्यागरूप और निरवध योगों के आसेवन रूप इत्वरिक अर्थात् परिमित काल तक का सामायिक वह गृहस्थ का उत्कृष्ट गुण स्थान है। इस तरह तीसरी प्रतिमा में गृहस्थ सम्यक् सामायिक का पालन करे तथा उसमें मनो दुष्प्राणिधान आदि अतिचारों का त्याग करे ।
४. पौषध प्रतिमा :-चौथी प्रतिमा में पूर्व की प्रतिमाओं का पालन करते हुये गृहस्थ श्रावक अष्टमी, चतुदर्शी आदि पूर्व दिनों में चार प्रकार की पौषध को स्वीकार करे। इस प्रतिमा में 'अप्रति लेखित-दुष्प्रति लेखित, शय्या-संस्तारक' आदि अतिचारों को त्याग करे और आहार आदि का सम्यग् अनुपालन अर्थात्-राग, स्वाद आदि अनुकूलता को त्याग कर पौषध
करे।
५. प्रतिमा प्रतिमा :-फिर पूर्व की प्रतिमाओं के अनुसार सर्व गुण वाला वह पाँचवीं प्रतिमा में, चौथी प्रतिमा में कहे अनुसार दिन में पौषध कर
और सम्पूर्ण रात्री तक काउस्सग्ग ध्यान करे और प्रतिमा पौषध बिना दिनों में स्नान नहीं करे, दिन में ही भोजन करे, कच्छा नहीं लगाये, दिन में सम्पूर्ण ब्रह्मचारी और रात्री में भी प्रमाण करे, इस तरह प्रतिमा में स्थिर रहा गृहस्थ पाँच महिने तीन लोक में पूज्यनीय, कषायों को जीतने वाले श्री जैनेश्वर देव का ध्यान करे अथवा अपने दोषों को रोकने के उपाय का ध्यान अथवा अन्य ध्यान करना।
६. अब्रह्मवर्जन प्रतिमा:-छठी प्रतिमा में रात्री के अन्दर भी ब्रह्मचारी रहे, इसके अतिरिक्त विशेष रूप में मोह को जीतने वाला, शरीर शोभा रहित वह स्त्रियों के साथ एकान्त में न रहे, और पूर्व कही हुई प्रतिमाओं में लक्ष्यबद्ध मन वाला, अप्रमादी वह छह महीने तक प्रगट रूप स्त्रियों का अति परिचय और शृङ्गार की बातें आदि का भी त्याग करे।
७. सचित्त त्याग प्रतिमा :-पूर्व की प्रतिमा में कहे अनुसार गुण वाला अप्रमादी गृहस्थ सातवी प्रतिमा में सात महीने तक सचित्त आहार का त्याग करे और अचित्त का ही उपयोग करे।