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श्री संवेगरंगशाला
मृत्यु होगी । सर्व अंग नहीं दिखे तो शीघ्र ही मृत्यु होगी, ऐसा जानना । इस तरह छाया पुरुष परछाई से आयुष्य काल को जानना चाहिए । यदि जल, दर्पण आदि में अपनी परछाई को देखे नहीं अथवा विकृत देखे तो निश्चय ही यमराज उसके नजदीक में घूम रहा है, ऐसा जानना । इस तरह छाया से भी सम्यग् उपयोगपूर्वक प्रयत्न करने वाला कला कुशल प्रायः मृत्यु काल को जान सकता है ।
५. नाड़ी द्वार : - अब यहाँ से नाड़ी द्वार कहते हैं । नाड़ी के ज्ञानी पुरुषों ने तीन प्रकार की नाड़ी कही है, प्रथम ईडा, दूसरी पिंगला और तीसरी सुषुमणा है । प्रथम बाँयी नासिका से बहती है, दूसरी दाहिनी नासिका से चलती है और तीसरी दोनों भाग से चलती है । इन तीनों नाड़ी के निश्चित ज्ञान युक्त श्रेष्ठ योगी मुख को बन्द करके, आँखों को स्थिर करके तथा सब अन्य प्रवृत्तियाँ छोड़कर केवल इसी अवस्था में स्थिर लक्ष्य वाले को स्पष्ट जानकारी हो सकती है। ईडा और पिंगला क्रमशः अढ़ाई घड़ी तक चलती है और सुषुमणा एक क्षण मात्र चलती है । इस विषय में अन्य आचार्यों ने कहा है कि - छह दीर्घ स्वरों का उच्चारण करने में जितना समय लगता है, उतना स्वस्थ शरीर वाला मनुष्य का एक उच्छ्वास अथवा एक निश्वास जानना, उतने काल को प्राण कहते हैं, ऐसे तीन सौ साठ प्राणों की एक बाह्य घड़ी होती है । उस प्रमाण से ईडा नाड़ी सतत् पाँच घड़ी चलती है और पिंगला उससे छह प्राण कम चलती है, यह छह प्राण सुषुमणा चलती है । इस तरह तीनों नाड़ी की दस घड़ी होती हैं, नाड़ियों का यह प्रवाह प्रसिद्ध है । इसमें बाँयी को चन्द्रनाड़ी और दाहिनी को सूर्यनाड़ी भी कहते हैं । अब इसके अनुसार काल ज्ञान के उपाय कहते हैं । परमर्षि गुरू ने कहा है कि - यदि आयुष्य का विचार करते समय वायु का प्रवेश हो तो जीता रहेगा और वायु निकले तो मृत्यु होगी । जिसको चन्द्रनाड़ी के समय सूर्यनाड़ी अथवा सूर्यनाड़ी के समय चन्द्रनाड़ी अथवा दोनों भी अनियमित चलें, वह छह महीने तक जीता रहेगा । यदि उत्तरायण के दिन से पाँच दिन तक अखण्ड सूर्यनाड़ी चले तो जीवन तीन वर्ष का जानना । दस दिन तक चले तो दो वर्ष जीयेगा और पन्द्रह दिन तक अखण्ड चले तो एक वर्ष का आयुष्य है । और उत्तरायण के दिन से ही जिसकी बीस दिन तक लगातार सूर्यनाड़ी चले वह छह महीने ही जीता रहता है । यदि पच्चीस दिन सूर्यनाड़ी चले तो तीन महीने, छब्बीस दिन चले तो दो महीने, और सत्ताईस दिन चले तो निश्चय ही एक महीने जीता है, और उत्तरायण से अट्ठाईस दिन सूर्यनाड़ी अखण्ड चले तो पन्द्रह दिन जीता है । उन्तीस दिन सूर्यं नाड़ी चले