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श्री संवेगरंगशाला
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भी दुर्लभ है । संयम के भार को अखंड धारण करने वाले धीर मुनि वृषभ को धर्मबुद्धि से वसति देने वाले पहले कहा है वह सर्व अर्पण किया है ऐसा समझना । उसने चारित्र का पक्षपात, गुणों का राग, उत्तम धर्म की साधन, निर्दोष पक्षपाती और कीर्ति की सम्यग् वृद्धि की है । तथा सन्मार्ग की वृद्धि, कुसंग का त्याग, सुसंग में प्रेम, अपने घर के प्रांगण में कल्पद्रुम बोने की विधि की है, इच्छित वस्तु को देने वाली दिव्य काम धेनु गाय का ग्रहण करना, हाथ में चिन्तामणी को धारण करना, और श्रेष्ठ रत्नाकर को अपने भवन के
गण में ही लाने की विधि की है । धर्म की प्याऊ का दान, अमृत का पान, श्रेष्ठ विधि का स्वीकार करना, सब सुखों का आमंत्रण करना और विजय ध्वजा को ग्रहण करना, तथा सर्व कामना को पूर्ण करने वाली कामितविद्या, मंत्रो की परम साधना की और विवेक सहित गुणज्ञता का स्पष्टकरण किया ऐसा समझना चाहिये । तथा उसके उपाश्रय ( वसति ) में रहे गुण समृद्ध साधुओं के चरण पास आकर लोग धर्म श्रवण करे, और श्रवण करने से चेतना प्रकट होती है, इससे भव्य जीव हमेशा उस विविध धर्म क्रिया में रक्त बनता है, तथा विरोधी हो तो वह भद्रिक भाव वाला बनता है भद्रिक हो तो वह दयावान बनता है, और यथा शक्ति मांस, मदिरा आदि के नियमों को धारण करता है, तथा कोई सम्यक्त्व प्राप्त करता है जो सम्यक्त्व वाला हो वह परम भक्ति वाला बनकर मनोहर श्री जैन मंदिर और जैन प्रतिमा की प्रतिष्ठा में, पूजा में जैन मन्दिर की तीर्थ यात्रा में तथा महोत्सव में सदा प्रवृत्ति करता है और अन्य भी जीव श्री जैन शासन की प्रभावना कार्यों में उद्यम करता है कई ग्लान साधु, । साधर्मिक आदि के कार्यों में उद्यम करते हैं, और कोई जैनागम की पुस्तक लिखाने में, कोई देश विरति को कोई सर्व विरति को स्वीकार करता है, कोई विविध तपस्या कर्म करने में उद्यम करता है, इस तरह उनके द्वारा जो-जो धर्म कार्य होता है उन सब पुण्य का हेतुभूत का मूल कारण साधु को उपाश्रय देने वाला है । ऐसा कहा है ।
वही सचमुच राजा है, वही राजाओं के मस्तक की मणि है, और वही स्थिर राज्य वाला है कि जिसके राज्य में साधु पुरुष अप्रतिहत विहार करते निर्विघ्न पूर्वक विचरते हैं, और सर्व देशों का राजा तुल्य वही देश आर्यता को धारता करता है, और वही आर्य है कि जहाँ उत्तम साधु विचरते हैं, और देश में भी वह नगर ही अन्य सब नगरों के मुकुट समान और पवित्र है कि जहाँ गुण के भंडार महामुनि नित्य विचरन करते हैं, नगर में भी वह गली, मौहल्ला