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श्री संवेगरंगशाला
पर्वत से वह नीचे उतरा और स्वस्थ शरीर वाला चलते कमशः पूर्व समुद्र के किनारे रत्नपुर नगर में पहुँचा। .
वहाँ उसके रूप से आकर्षित हृदय वाली मदन-मंजूषा नामक वेश्या ने अति श्याम-सुन्दर केश समूह से शोभते मस्तक वाला और कामदेव को भी जीतने वाला अति देदीप्यमान रूप वाले उसे देखकर उसकी माता को कहा"अम्मा ! यदि इस पुरुष को तू नहीं लायेगी तो निश्चय ही मैं प्राण का त्याग करूँगी, इसमें विकल्प भी नहीं करूंगी।" यह सुनकर अक्का राजपुत्र ताराचन्द्र को अपने घर ले आई, उसके बाद सत्कारपूर्वक स्नान, विलेपन, भोजन आदि करके अपने घर में रहे, वैसे वह वहाँ चिरकाल जक उसके साथ रहने लगा। तब माता ने कहा-हे पापिनी ! भोली मदन-मंजुषा ! साधु के समान इस निर्धन मुसाफिर का संग्रह तू क्यों करती है ? हे पुत्री ! वेश्याओं का यह कुलाचार है कि-शक्ति से इन्द्र और रूप से स्वयं यदि कामदेव हो तो भी निर्धन. की इच्छा नहीं करे। पुत्री ने कहा-अम्मा ! तेरे चरणों के प्रभाव से इतना धन है कि सात पीढ़ी पहुँचे इतना धन है, अन्य धन से क्या करूँगी ? फिर अक्का ने निष्ठुर शब्दों से उसे बहुत बार तिरस्कार किया, लेकिन उसने जब ताराचन्द्र को नहीं छोड़ा, तब अक्का ने विचार किया कि-यह जब तक जीता है, तब तक यह पुत्री मेरी बात को नहीं स्वीकार करेगी, इससे गुप्त रूप में मैं इसे उग्र जहर देकर मार दूंगी। फिर किसी सुन्दर अवसर पर उसने उग्र जहर से मिश्रित चर्ण वाला पान खाने के लिए स्नेहपूर्वक उसे दिया । ताराचन्द्र ने उसे स्वीकार किया और विकल्प बिना उसका भक्षण भी किया, फिर भी पूर्व में खाई हुई गोली के प्रभाव से विष विकार नहीं हुआ। इससे खेदपूर्वक हा ! विष प्रयोग करने पर भी यह पापी अद्यापि क्यों नहीं मरा? ऐसा विचार कर अक्का ने पुनः उसके प्राणघातक कार्मण किया, परन्तु गुटिका के प्रभाव से उस कार्मण से भी वह नहीं मरा, परन्तु आरोग्य रूप और शोभा अधिकतर बढ़ने लगी । इससे वह वजघात हुआ हो इस तरह, या लूटी गई हो इस तरह स्वजनों से दूर फेंक दी हो, इस तरह हथेली में मुंह ढाँककर शोक करने लगी। तब ताराचन्द्र ने उससे कहा-हे माता ! आपको कभी ऐसा उदास नहीं देखा, पहली बार ही वर्षा ऋतु के काले बादल के समान आपका आज श्याम मुख क्यों है ? उसने कहा-पुत्र ! निश्चय जो शक्य न हो वह हितकर और युक्ति वाला भी कहने से क्या लाभ है ? ताराचन्द्र ने कहा-माता ! आप कहो, मैं आपका कहना स्वीकार करूँगा ! उसने कहा-पुत्र ! यदि ऐसा ही है तो सुनहे पुत्र ! तू सुन्दर विशेष लक्षण वाला, रूप वाला, सद्गुणी और मनोहर शरीर