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श्री संवेगरंगशाला लौकिक कार्य किया। फिर प्रीति से लक्ष्यबद्ध बुद्धि वाले स्वजनादि का प्रतिदिन दर्शन सार सम्भाल आदि करने से कामक्रम से वह शोक के भार से मुक्त हुआ। पूर्व परम्परा अनुसार से कुटुम्ब की चिन्ता में, लोक व्यवहार में और दानादि धर्मकार्यों में भी वह प्रवृत्ति करता था और पूर्वजों के मार्ग को अखण्ड रखा। केवल धीरे-धीरे लक्ष्मी कम हुई, व्यापार के लिए दीर्घकाल से परदेश में घूमता हुआ वापिस नहीं आया, भण्डार खाली हुए, ब्याज में रखा हुआ धन खत्म हो गया और अनाज आदि संग्रह किया था वह तीव्र अग्नि के कारण जल गया। इस तरह पुण्य के विपरीतता के वश-पापोदय से उसका जो जहाँ था वहीं विनाश हो गया और इससे स्वजन भी सारे पराये हो इस तरह विपरीत बन गये । इस तरह परछाई की क्रीड़ा समान अथवा स्वप्न में प्राप्त हुआ धन आदि समान अनित्य स्वरूप देखकर अति शोकातुर बना वह विचार करने लगा कि
'मैं कुसंग से रहित हूँ, परस्त्री तथा जुए का त्यागी हूँ और न्याय मार्ग में चलने वाला हूँ, फिर भी मुझे खेद है कि मेरा धन आदि सारा क्यों चला गया ? अथवा बिजली के प्रकाश समान चपल प्रकृति वाला होने से धन चला जाए, परन्तु बिना निमित्त से स्वजन क्यों विमुख हुये? हा! हा! जान लिया, निश्चय धन जाने से अपनी कार्य सिद्धि नहीं होती, इसलिए अब भिखारी जैसे विचार बिना मेरे प्रति स्वजन भी स्नेह किस तरह रखें ? मनुष्य के स्वजन, बन्ध और मित्र तब तक सम्बन्ध रखते हैं, कि जहाँ तक कमलपत्र तुल्य लम्बी आँखों वाली लक्ष्मी उसे नहीं छोड़ती है । अब धन रहित मुझे यहाँ रहना योग्य नहीं है क्योंकि-पूर्वजों के परम्परा का व्यवहार तोड़ना वह सज्जनों के लिए अति विडम्बना रूप है। ऐसा विचार कर उसने अन्यत्र जाने की इच्छा रूप अपना अभिप्रायः क्षोमिल नामक मित्र से कहा । मित्र ने कहा-तुझे दूसरे देश में जाना योग्य ही है, केवल मैं भी तेरे साथ ही जाऊँगा। फिर वे दोनों अपने नगर से निकलकर शीघ्र गति से सुवर्ण भूमि में पहुँचे, और वहाँ प्राप्ति के लिए अनेकशः उपाय प्रारम्भ किया, इससे भाग्यवश और क्षेत्र की महिमा से किसी तरह बहुत धन प्राप्त किया। उस धन से श्रेष्ठ मूल्य वाले आठ रत्न खरीद लिये और घर को याद करके घर जाने के लिए वहाँ से अपने नगर की ओर चले । फिर आधे मार्ग में क्षोमिल को अति लोभ की प्रबलता से वे सारे रत्न लेने की इच्छा हुई । इससे इसको किस प्रकार ठगना ? अथवा सर्व रत्नों को किस तरह ग्रहण करना ? इस प्रकार एक ही विचार वाला वह उपायों को सोचने लगा। फिर एक दिन वज्र गाँव गया, तब अन्दर पत्थर के टुकड़े