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श्री संवेगरंगशाला देखने लगा, तब आकाश तल से विद्याधर का जोड़ा नीचे आया, और हर्षपूर्वक विकसित नेत्रों वाले उस दम्पत्ति ने मुनि के चरण कमल में नमस्कार कर, गुण की स्तुति करके निर्मल पृथ्वी पीठ ऊपर बैठे, तब ताराचन्द्र ने कहाआप यहाँ किस कारण से पधारे हैं ? इससे विद्याधर ने कहा कि विद्याधरों की श्रेणी वैताढ्य पर्वत से इन प्रभु को वन्दन करने के लिये आये हैं। ताराचन्द्र ने कहा-हे भद्र ! यह मुनि सिंह कौन हैं ? जो कि आभूषण के त्यागी होते हुए भी दिव्य अलंकारों से भूषित हों और मनुष्य होते हुये भी अमानुषी दैव महिमा से शोभित हों ऐसे दिखते हैं । अत्यन्त प्रयत्नपूर्वक पूछने से प्रसन्न बने उस विद्याधर ने कहा-सुनो!___अनेक गुणों से युक्त ये महात्मा विद्याधरों की श्रेणी के नाथ हैं। जन्म जरा-मरण के रणकार से भयंकर इस संसार के असीम दुःखों को जानकर, राज्य ऊपर अपने पुत्र को स्थापन कर स्वयमेव समत्व प्राप्त किया है, शत्रु-मित्र समान मानने वाले उत्तम साधु बने हैं। उत्तम राज्य लक्ष्मी को और अत्यन्त भोगों को खल स्त्री के समान इन्होंने लीलामात्र में छोड़ दिया है, आज भी इनकी विरहाग्नि से जलती अन्तःपुर की स्त्रियाँ रोती रुकी नहीं हैं। प्रज्ञप्ति आदि महा विद्याएँ इनके कार्यों में दासी के समान सदा तैयार रहती थीं, और चिरकाल से वृद्धि होती अति देदीप्यमान उनकी कीर्ति तीन लोकरूपी रंग मण्डप में नटनी के समान नाचती हैं। तप शक्ति से उनको अनेक लब्धियाँ प्रगट हुई हैं, अनुपम सुख समृद्धि से जो शोभते हैं और ये अखण्ड मासखमण करते हैं। इनके समान इस धरती में कौन है ? इस प्रकार गुणों से युक्त, भव से विरक्त, चारित्ररूपी उत्तम रत्नों का निधान रूप, निरूपम करुणारूपी अमृत रस के समुद्र और राजाओं से वन्दनीय यह मुनिश्वर हैं ऐसा जान । ऐसा कहकर विद्याधर जब रुके, तब रोमांचित से कंचुकित काया वाला ताराचन्द्र ने फिर भक्तिपूर्वक उस मुनि को वन्दन किया। फिर उसके शरीर को महान् रोगों से जर्जरित देखकर विद्याधर ने कहा-अरे महायश ! तू अत्यन्त महिमा वाला
और गुणों का निधान रूप इस उत्तम मुनि के कल्पतरू की कुंपल समान चरण युगल को स्पर्श करके क्यों इस रोग को दूर नहीं करता है ? ऐसा सुनकर परमहर्ष रूप धन को धारण करते ताराचन्द्र ने मस्तक से महामुनि के चरण कमल को स्पर्श किया। मुनि की महिमा से उसी क्षण में उसका दीर्घकाल का रोग नाश होते ही ताराचन्द्र सविशेष सुन्दर और सशक्त शरीर वाला हुआ। उस दिन से ही अपना जीवन नया मिला हो ऐसा मानता हुआ परम प्रसन्नतापूर्वक वह स्तुति करने लगा कि :