________________
१४२
श्री संवेगरंगशाला
पाप का नाश करने वाला है कि जहाँ साधु पुरुष रहते हैं, वही स्थान धन्य है, पवित्र है, और बाकी सब स्थान शून्य हैं ऐसा मैं मानता हूँ। उस मौहल्ले में भी जहाँ गीतार्थ सुविहित साधुओं का निवास होता है, वही एक घर को मैं निश्चय पूर्ण लक्षण वाला मानता हूँ। उसी घर में लक्ष्मी का वास है, वह घर श्रेष्ठ रत्नों की वृष्टि के लिए योग्य है, पृथ्वी में वास्तविक पुरुष वही दाता है और उसका ही परमार्थ से उदय है अन्यथा संयम रूपी लक्ष्मी को क्रीडा करने भूमि समान जैन वचन का रागी महामुनियों का वहाँ निवास भी क्यों न हो? और उस घर में सिद्धान्त स्वाध्याय करने से उसकी ध्वनि के प्रभाव से क्षुद्र उपद्रव आदि दोष नहीं हैं, और अभ्युदय आदि गुण होते हैं । रोग, अग्नि, पिशाच तथा ग्रह आदि क्षद्र देवों का दोष तथा कर मनुष्य-तिर्यचों के पाप भी पाप से प्रबल योग से प्रकट होता है, उस पाप का प्रतिपक्षी दक्ष श्री जिनेश्वर का धर्म जानना, और जहाँ उस धर्म की प्रवृत्ति हो, वहाँ पाप का विकार भी कहाँ से हो सकता ? सूर्य बिम्ब के प्रभाव से अंधकार का समूह के समान स्वपक्ष बलवान हो तो प्रायः प्रतिपक्ष संभव नहीं होता है, वैसे मोक्ष की साधना में सफल कारण भूत ज्ञान दर्शन सहित जो विविध तप, नियम, संयम, स्वाध्याय, अध्ययन, ध्यान आदि सद्धर्म चारित्र का गुण भी, अपनी वसति में रहने वाले साधुओं के परम उपकार को सम्यग् मानने वाले गुणों के सेवक, राजा अथवा मन्त्री, सेठ सार्थवाह धनपति की अथवा अन्य भी किसी बस्ती में रहते साधुओं को बाधारहित युक्त होता है, और उनके रहने से उस बस्ती में होते धर्म की महिमा से ही बस्ती दाता को पाप से होने वाले दोष नहीं होते हैं और सद् धर्म से होने वाले विविध प्रकार के महान् उपकार होते हैं, जैसे कि अत्यन्त अनुराग वाली पत्नी, पुत्र, सपुत परिवार अच्छा विनीत आदि बनता है तथा चतुरंग सेना आदि उस बस्ती के दाता की भूमिका को अनुरूप लाभ होता
संसार सुखों की आकांक्षा से मुक्त केवल एक मोक्ष सुख के लक्ष्य वाला महानुभाव सुविहित साधुओं को जो इस भव में घास की बनी जीर्ण झोंपड़ी के भी एक कोने में स्थान देता है, वह मैल से भरा हुआ शरीर रूपी पिंजरे को छोड़कर दूसरे जन्म में मणि मय देदीप्यमान बड़ी दिवाल की कान्ति के विस्तार से चित्त में रति जगाने वाला अति विशाल सेंकड़ों पुतली और झरोखे और किल्ले से शोभित, विचित्र मणि से जड़ित हजारों बड़े स्तंभों से ऊँचा, रत्नों से जड़ित फर्श वाला, रत्न और मणि के सुन्दर किरणों के समूह से हमेशा पूर्ण