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श्री संवेगरंगशाला
दोष वाली परन्तु अति महान गुणकारी वसति सदा मुनियों को देनी चाहिये, क्योंकि उसके बिना वे संयम पालन करने में समर्थ नहीं हो सकते हैं । इस कारण से वसति देने से उसे देने वाले गहस्थ दुस्तर संसार समुद्र को भी तर जाते हैं, इसीलिये ही शास्त्रकारों ने उसे 'शय्यातर' अर्थात् शय्या से पार उतारने वाला कहा है, और उसने दी हुई वसति में रहे हुए साधु अन्य के पास से भी वस्त्र यात्रादि जो प्राप्त करते हैं वह भी परमार्थ से उसने दिया है ऐसा गिना जाता है। यद्यपि पूर्व में कहे अनुसार भोजनादि उनको स्वयं का वहां कुछ न मिले, तो भी वसति के दाता को तो उस दान में मूल का कारण बनता है, क्योंकि वसति मिलने के बाद अशनादि अन्य वस्तु के दान का मूल दाता तो शय्यातर है फिर देने वाले दूसरे तो उत्तर कारण है। प्रायः मूल अंग शरीर हो तभी उसके साथ सम्बन्ध रखने वाले हाथ, पैर आदि उत्तर अंगों का वह अधिकारी बनता है। जैसे जड़ का योग बलवान हो तो वृक्ष बड़ा विस्तार वाला होता है, वैसे वसति की प्राप्तिरूपी मूल बलवान हो तो साधु वर्ग भी संयम की विशेष वृद्धि को प्राप्त करते हैं। अपने घर में वसति (स्थान) देने वाला गृहस्थ मुनि पुंगवों को वायु, धूल, वरसात, ठंडी, ताप, आदि के उपसर्गों से, चोरों से दुष्ट श्चापदों के समूह से तथा मच्छरों से रक्षण करते सदाकाल उन मुनियों के मन, वचन, काया को प्रसन्न करते हैं। और इन योगों की प्रसन्नता से ही मुनियों में श्रुति, मति और संज्ञा तथा शान्ति का बल प्रगट होता है तथा शरीर, बल, उनका शुभध्यान की वृद्धि के लिए होता है।
कहा है कि प्रायः सुमनोज्ञ, आश्रय, शयन, आसन और भोजन से महान् लाभ मिलता है, सुमनोज्ञ, ध्यान का ध्याता साधु संसार का विरागी बनता है। जिसके आश्रम में मुहर्त मात्र भी मुनि विश्राम करते हैं इतने से ही वह निश्चय कृत कृत्य बनता है, उसे अन्य पुण्य से क्या प्रयोजन है ? उनका जन्म धन्य है, कुल धन्य है, और वह स्वयं भी धन्य है कि जिसके घर में पाप मैल को धोने वाले सुसाधु रहते हैं। और यहाँ प्रश्न उठता है कि-इस भव में उसका जन्म यदि खराब कुल में हुआ हो तो जगत में एक श्रेष्ठ पूज्यनीय मुनिराज उसके घर में कैसे रहते हैं ? इसका उत्तर देते हैं कि जिसका मद, मोह नाश हआ हो ऐसे मुनि पुण्यवंत के घर में ही रहते हैं क्योंकि-पापियों के घर में कभी रत्न वृष्टि नहीं होती है। जीवों को कलियुग के कलेश से रहित ऐसा अवसर किसी समय ही मिलता है कि जिस काल में गुणरत्नों के महानिधि श्रेष्ठ मुनि उसके घर में रहे। जैसे पुण्य बिना कल्प वृक्ष की छाया
नहीं मिलती है वैसे पाप को चकनाचूर करने वाली महानुभावों की सेवा