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श्री संवेगरंगशाला
वह
राशी का पात्र बना । इस तरह अति दुष्कर तपस्या में रक्त और अरण्यवासी भी प्रतिज्ञा भंजक बना, वह सब गुरु के प्रति द्वेष करने का फल जानना । इस कारण से आराधना के योग्य जीवों को गुरुदेव को प्रसन्न करना चाहिये । उसी को आराधना का विशिष्ट लिंग कहा है। अधिक इस विषय पर क्या कहें । इस प्रकार मोक्ष मार्ग के रथ समान परिकर्म विधि आदि चार बड़े मूल द्वार वाली संवेगरंगशाला में पन्द्रह प्रति द्वार वाला आराधना के प्रथम परिकर्म द्वार का यह दूसरा लिंग अन्तर द्वार कहा है । पूर्व कहे लिंगों वाला भी शिक्षा बिना सम्यग् आराधना को नहीं प्राप्त करता है, इस कारण से अब शिक्षा द्वार कहते हैं
तीसरा शिक्षा द्वार और उसके भेद - वह शिक्षा (१) ग्रहण, (२) आसेपन, और ( ३ ) तदुमय । इस तरह तीन प्रकार की है, उसमें ज्ञानाभ्यास रूप शिक्षा को ग्रहण - शिक्षा कहलाती है, और वह साधु तथा श्रावक को भी जघन्य से सूत्रार्थ के आश्रित अल्प बुद्धि वाले को भी आठ प्रवचन माता तक तो ज्ञान होता ही है। उत्कृष्ट से तो साधु को सूत्र से और अर्थ से ग्रहण शिक्षा अष्ट प्रवचन माता आदि से लेकर बिन्दुसार नामक चौदहवाँ पूर्व तक ज्ञान होता है। गृहस्थ को भी सूत्र से उत्कृष्ट छज्जीवनिकाय दशवैकालिक सूत्र के चौथे अध्ययन तक और अर्थ को पाँचवां पिंडेषणा अध्ययन तक जानना, क्योंकि प्रवचन माता के ज्ञान बिना निश्चय वह सामायिक भी किस तरह कर सकता है ? और छज्जीवनिकाय के ज्ञान बिना जीवों की रक्षा भी किस तरह से कर सकता है ? अथवा पिंडेषणा के अर्थ जाने बिना साधु महाराज को प्रासुक और एषणीय आहार पानी वस्त्र पात्र को किस तरह दे सकता है । अतः घोर संसार समुद्र को तैरने में नाव तुल्य प्रशस्त गुण प्रकट का प्रभाव वाला, पुण्यानुबन्धी पुण्य का कारण परम कल्याण आदि स्वरूप वाला है और अन्त में भी मधुर हितकर प्रमादरूपी दृढ़ पर्वत को तोड़ने में वस्त्र समान पापरहित और जन्ममरण रूपी रोगों को नाश करने के लिये मनोहर रसायण की क्रिया सदृश श्री जैन वचन की प्रथम सूत्र से शुद्ध और अखण्ड अध्ययन करना चाहिये, फिर सुसाधु के पास उसको अर्थ से सम्यग् सुनना चाहिये । आत्मा में अनुबन्ध और स्थिरीकरण करने के लिए एक बार पढ़ा हुआ सूत्र का और सुने हुये अर्थ का भी जिन्दगी तक प्रयत्नपूर्वक बार-बार चिन्तन - अनुप्रेक्षण करना चाहिए । श्रुत ज्ञान का लाभ :- मैंने अति पुण्य से यह कोई परम तत्त्व को प्राप्त किया है, ऐसा निखध भाव से उसका बहुत मान करे, सर्व प्रकार से कल्याण
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