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श्री संवेगरंगशाला
उसके बाद सूर्योदय हुआ, तब रात्री का सारा वृत्तान्त सुनने से क्रोधित हए लोगों ने तथा राजा ने उसे नगर में से बाहर निकाल दिया, फिर अकेला घूमता हुआ वइदेश नामक नगर में पहुँचा, वहाँ उसने तारापीठ नामक राजा को प्रसन्न किया, प्रसन्न हुए राजा ने उसे नौकरी दी, और प्रसन्न मन वाला वह वहाँ रहने लगा, एक दिन सूर्यग्रहण हुआ तब विचार करने लगा कि-आज मैं ब्राह्मणों को निमंत्रण देकर बहुत साग से युक्त, अनेक जात के पेय पदार्थ सहित विविध मसालों से युक्त अनेक स्वादिष्ट वाले विविध भोजन को तैयार करवाऊँगा
और राजा के गडरियों के पास से दूध मंगवाऊँगा। यदि बार-बार विनयपूर्वक मांगने पर भी वे किसी प्रकार से दूध नहीं देंगे तो मुझे आपघात करके भी उसे ब्रह्म हत्या दूंगा। ऐसा मिथ्या विकल्पों से भ्रमित हुआ, कल्पना को भो सत्य के समान मानता हुआ, वह 'भोजन का समय हुआ है' ऐसा मानकर अपने मन कल्पना द्वारा निश्चय ही "बार-बार बहुत समय तक मांगने पर भी गडरियों ने दूध नहीं दिया" ऐसा मानकर तीव्र क्रोधवश होकर शस्त्र से अपनी हत्या करने लगा और ऊँचे हाथ करके बोला-अहो लोगों ! यह ब्रह्म हत्या राजा के गडरियों के निमित्त से है, क्योंकि इन्होंने मुझे दूध नहीं दिया, इस तरह एक क्षण बोलकर जोर से शस्त्र मारकर अपनी हत्या की और रौद्र ध्यान को प्राप्त कर वह मरकर नर्क में गया। क्योंकि ऐसी स्वच्छंद प्रवृत्ति करने वाला चित्त रूपी हाथी से मारा गया। जीव एक क्षण भी सुख से नहीं रह सकता है।
इसलिए मन को प्रतिक्षण में शिक्षा देनी ही चाहिये, अन्यथा ऊपर कहो हई वह परिस्थिति अनुसार क्षण भी कुशलता नहीं होती है, और स्वच्छंदी दासी को वश करने के समान, स्वच्छंदी मन को ही अपने वश करना चाहिए उसने ही युद्ध मैदान में विजय ध्वजा प्राप्त किया है वही शूरवीर और वही पराक्रमी है। सम्भव है कि कोई पुरुष किसी तरह सम्पूर्ण समुद्र को भी पी जाये, जाज्वल्यमान अग्नि की ज्वालाओं के समूह बीच शयन भी करे शूरवीरता से तीक्ष्णधार वाली तलवार की धार ऊपर भी चले, और तीव्र अग्नि जैसे जलते भाले की नोंक ऊपर पद्मासन पर बैठने वाला भी जगत में प्रकृति से ही चंचल, उन्मार्ग में मस्त रहने वाला और शस्त्र रहित भी मन को विजय नहीं कर सकते हैं । जो मदोन्मत्त हाथी का भी दमन करते हैं, सिंह को भी अपने वशीभूत बनाते हैं उछलते समुद्र के पानी के विस्तार को भी शीघ्र रोक सकते हैं, परन्तु वे कष्ट बिना ही मन को जीतने में समर्थ नहीं होते, तो भी किसी प्रकार यदि उसने मन को जीत लिया तो निश्चय ही उसने जीतने योग्य' सब कुछ जीत