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श्री संवेगरंगशाला
एक की अच्छी तरह परीक्षा करके उसको स्वीकार करूँ ! राजा ने वह स्वीकार किया, तब उसने बहुत राजऋद्धि के साथ इन्द्रपुर नगर में जाने के लिये प्रस्थान किया । उसे आते सुनकर प्रसन्न हुये इन्द्रदत्त राजा ने अपनी नगरी को विचित्र ध्वजाओं को बंधवा कर सुशोभित करवाया। उस कन्या को आने के बाद सुन्दर ठहरने का स्थान दिया, और भोजन आदि की उचित व्यवस्था की, उसने राजा को निवेदन किया कि तुम्हारा जो पुत्र राधा को बींधेगा, वही मेरे साथ शादी करेगा, इसी कारण से मैं यहाँ आई हूँ। राजा ने कहा-हे सुतनु ! एक ही गुण से तू परीक्षा में प्रसन्न नहीं होना क्योंकि मेरे सारे पुत्र प्रत्येक श्रेष्ठ गुण वाले हैं। उसके बाद शीघ्र उचित प्रदेश में बायें दाहिने घूमते चक्र की पंक्ति वाला मस्तक पर राधावेध को धारण करता बड़ा स्तम्भ खड़ा किया और वहां अखाड़ा बनाया, मंच तैयार किये, चन्द्रवे बाँधे गये, और हर्ष पूर्वक उछलते मात्र वाले राजा आकर वहाँ बैठा । नगर निवासी आए, राजा ने अपने पुत्रों को बुलाया, और वह राजपुत्री भी वरमाला को लेकर आई । उसके बाद सर्व में बड़े श्रीमाल को राजा ने कहा-हे वत्स ! यह कार्य करके मेरे मनोवांछित को सफल करो, निज कूल को उज्जवल करो, पवित्र राज्य को परम उन्नति दिखाओ, जय पताका को ग्रहण कर और शत्रुओं की आशाओं को खत्म कर दो, इस तरह कुशलता से शीघ्र राधावेध को करके तू प्रत्यक्ष राजलक्ष्मी सदृश यह निवृत्ति नाम की राजपुत्री को प्राप्त करो। ऐसा कहने से वह राजपुत्र क्षोभित होते नष्ट शोभा वाले पसीने से भीगे हुये, चित्त से शून्य बने, दीन मुख और दीन चक्षु वाले घबराहट के साथ, निस्तेज शरीर वाला, सत्त्व अथवा मानवा युक्त, लज्जा युक्त, मिथ्याभिमान रहित, नीचे उतरते, पुरुषार्थ को छोड़ते दृढ़ बाँधा हो इस तरह स्तम्भ के समान स्थिर खड़ा रहा, पुनः भी राजा ने कहा-हे पुत्र ! संक्षोभ को छोड़कर इच्छित कार्य को सिद्ध कर, तूझे इस कार्य में क्यों उलझन है ? हे पुत्र! जो संक्षोभ करता है वह कलाओं में अति निपुण नहीं होता है, निष्कलंक कलाओं के भण्डार रूप तेरे जैसे को संक्षोभ किस लिए ? राजा के ऐसा कहने से घिट्ठाई (कठोरता) पूर्वक अल्प भी चतुराई बिना श्री माली ने कांपते हाथों द्वारा मुश्किल से धनुष्य को उठाया और शरीर का सर्व बल एकत्रित कर मुसीबत से उसके ऊपर बाण चढ़ाकर 'जहाँ जाए वहाँ भले जाए' ऐसा विचार कर लक्ष्य बिना बाण को छोड़ा । वह बाण स्तम्भ में टकराकर शीघ्र टूट गया, इससे अति