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श्री संवेगरंगशाला
होता अर्थात् उसकी श्रेष्ठ गति नहीं है। अतः कार्य सिद्धि की इच्छा वाले को प्रमाद छोड़कर प्रथम से ही सदा ज्ञान को ग्रहण करने में सम्यक् प्रयत्न करना चाहिये और प्रस्तुत विषय में शास्त्रोक्त सर्व नयों का विविध मतों का संग्रह रूप ज्ञाननय और क्रिया नय नाम के दो ही नय हैं । इसमें ज्ञाननय का मत यह है कि निश्चय कार्य का अर्थी सर्व प्रकार से हमेशा ग्रहण शिक्षा में जो सम्यग् यत्न करे, वह इस तरह-ग्रहण शिक्षा से हेय, उपादेय अर्थ को सम्यग् रूप जानना उसके बाद में ही बुद्धिमान को कार्य में प्रयत्न करना चाहिये, अन्यथा फल में विपरीतता होती है। मिथ्या ज्ञान से प्रवृत्ति करने वाले को फल की प्राप्ति विपरीत होने से मनुष्यों को फल सिद्ध का एक ही हेतु सम्यग् ज्ञान ही है, क्रिया नहीं है। इस प्रकार इस लोक के फल के लिए जैसे कहा, वैसे जन्मान्तर के फल की भी यही विधि है, क्योंकि श्री जिनेश्वरों ने कहा कि "प्रथम ज्ञान फिर दया-क्रिया" इस तरह सर्व विषय में प्रवृत्ति करते साधु संयम का पालन करे। अज्ञानी क्या करेगा? और पुण्य तथा पाप को क्या जानोगे? यहाँ पर जैसे क्षायोपशमिक ज्ञान विशिष्ट फल साधक है वैसे क्षायिक ज्ञान भी सम्यग् विशिष्ट फल साधक है । ऐसा जानना चाहिये । क्योंकि संसार समुद्र को पार उतरने वाले दीक्षित और प्रकृष्ट तप, चारित्र वाले श्री अरिहंत देव को भी वहाँ तक मोक्ष नहीं हुआ था कि जब तक जीव अजीवादि समस्त पदार्थों के समूह को बताने में समर्थ केवल ज्ञान प्रगट नहीं हुआ। इसलिए इस लोक पर लोक की फल प्राप्ति में अवन्ध्य कारण ज्ञान ही है, इसलिए उसमें प्रयत्न नहीं छोड़ना चाहिए, ज्ञान बिना इन्द्रदत्त के पुत्र समान मनुष्य गौरव को नहीं प्राप्त किया और ज्ञान से उसका ही पुत्र सुरेन्द्र दत्त के समान गौरवता प्राप्त किया वह इस प्रकार है :
इन्द्र दत्त के अज्ञपुत्र और सुरेन्द्र दत्त की कथा
इन्द्रपुरी सदृश मनोहर इन्द्रपुर नाम का श्रेष्ठ नगर था उसमें देवों पूज्य इन्द्र समान पंडितों के पूज्य इन्द्रदत्त नाम का राजा था उसको बाईस रानियों से जन्मे हुए कामदेव सदृश मनोहर रूप वाले श्रीमाली आदि बाईस पुत्र थे। एक समय उस राजा ने अपने घर में विविध क्रीड़ायें करती प्रत्यक्ष रति के समान मंत्रीश्वर की पुत्री को देखा, इससे राजा ने अनुचर से पूछा-यह किसकी पुत्री है ? उसने कहा-हे देव! यह मंत्रीश्वर की पुत्री है, फिर उसके प्रति रागी हुआ राजा ने स्वयं विविध रूप में मंत्री से याचना की, उससे विवाह