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श्री संवेगरंगशाला
उस सुषमा को ग्रहण की, पुत्त्रों सहित सार्थवाह भय से जल्दी अन्य स्थान पर चला गया । और इच्छित वस्तु लेकर पल्लीपति अपने स्थान की ओर चला । उसके बाद सूर्य उदय होते राजा के अनेक सुभटों से घिरे हुये पाँच पुत्रों सहित सार्थवाह शरीर ऊपर मजबूत बख्तर धारण कर पुत्री के स्नेह से जल्दो उसके पीछे-पीछे चले । धन सार्थपति ने सुभटों को कहा- मेरी पुत्री वापिस लाओ तो धन तुमको दे दूंगा, ऐसा कहने से सुभट उसके पीछे दौड़े, उनको आते देखकर चोर धन छोड़कर भागे और उस धन को लेकर सुभट जैसे आए थे वैसे वापस चले गये । पुत्र सहित सार्थवाह अकेले भी चोरों के पीछे पड़े और शीघ्रमेव चिलाती पुत्र के पास पहुँच गये । इससे चिलाती 'यह सुषमा किसी की भी न हो' ऐसा सोचकर उसका सिर काट डाला और उसे लेकर जल्दी भाग गया, तथा निराश होकर सार्थ पति वहाँ से वापिस आया । चिलातीपुत्र ने जंगल में घूमते हुये काउस्सग्ग ध्यान में स्थित एक महासत्व वाले मुनि को देखकर कहा - " अहो ! महामुनि ! मुझे संक्षेप से धर्म समझाओ, अन्यथा तेरे भी मस्तक को तलवार से फल समान काट दूंगा ।" निर्भय मुनि ने इस तरह भी उपकार होने वाला है ऐसा जानकर कहा — उपशम, विवेक और संवर इन तीन पदों में धर्म का सर्वस्व तत्त्व है । इन पदों को धारण करके वह एकान्त में सम्यग् रूप में चिन्तन करने लगा, उपशम शब्द अर्थ यह होता है कि क्रोधादिकषापों का उपशम ( सर्व का त्याग ) करना है, वह क्रोधादि मेरे में से कम किस प्रकार हो सकते हैं ? वह क्रोधादि क्षमा नम्रता आदि गुणों को सेवन करने से शान्त हो सकते हैं । विवेक भी निश्चय से धन, स्वजन आदि त्याग करने के लिए होता है तो अब मुझे तलवार से क्या प्रयोजन है अथवा इस मस्तक से क्या लाभ? और मैं इन्द्रियों और मन के विषयों से निर्वृत्ति रूप त्याग संवर अंगीकार करता है इस प्रकार चिन्तन मनन करते तलवार और मस्तक त्याग कर नासिका के अग्र भाग में दृष्टि स्थापन कर मन, वचन, काया के व्यापार को त्याग कर बार-बार उन तीन पदों के चिन्तन की गहराई में डूब गया और मेरू पर्वत के समान अति निश्चल वह काउस्सग्ग ध्यान में खड़ा रहा, इधर चिलाती पुत्र के शरीर पर लिपटे हुये खून की दुर्गन्ध से वहाँ लुब्ध वज्र समान तीक्ष्ण चोंच युक्त मजबूत मुख वाली हजारों चींटियाँ आ गईं और शरीर के चारों ओर से भक्षण करने लगीं, चींटियों ने पैर से मस्तक तक भक्षण करके चिलाती पुत्र के सारे शरीर को छलनी समान बना दिया फिर भी वह ध्यान से विचलित नहीं हुआ। उस मुनि के शरीर को प्रचण्ड मुख वाली चींटियों ने भक्षण करने से शरीर में पड़े हुए छिद्र समस्त पाप को निकालने के
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