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श्री संवेगरंगशाला
लिए बड़े द्वार जैसे दिखने लगे। इस तरह वह बुद्धिमान ढ़ाई दिन तक घोर कष्ट को समभावपूर्वक सहन कर उत्तम चारित्र धन वाले महात्मा सहस्रार नामक आठवें देवलोक का सुख प्राप्त किया। इस तरह अत्यन्त उग्र मन, वचन, काया द्वारा पाप करने वाला नरक अधिकारी भी स्वर्ग सुख का अधिकारी बना है वह सर्व साधारण कहा है, अब यहाँ से प्रकृत-आराधना के योग्यता कहते हैं वह सुनो :
सम्यग् रूप से निश्चयता द्वारा परमार्थ का ज्ञाता, अनाथ लोग के कार्य को छोड़ने में उद्यमशील, और जो गुण कहेंगे ऐसे गुण वाला गृहस्थ आराधना के योग्य बनता है। लेकिन सम्यग दर्शन जिसका मूल है वे पाँच अणव्रत से संयोग, तीन गुणवतों से युक्त और चार शिक्षाव्रतों से सनाथ, जो श्रमणोपासक का धर्म उसे निरतिचार पालन कर और दर्शन आदि ग्यारह पडिमाओं को पालकर अपने बल-वीर्य की हानि जानकर शुद्ध परिणाम वाला श्रावक जैनाज्ञा के अनुसार अन्तिम काल की आराधना करे । गुरुदेवों का योग प्राप्त कर सवेगी गीतार्थ साधु के समान पाँच समिति से सीमित, तीन गुप्ति से गुप्त, सत्त्व बल वीर्य को नहीं रोकते । प्रतिदिन उत्तरोत्तर बढ़ते अत्यन्त श्रेष्ठ संवेग वाला, सूत्र अर्थ से मनोहर श्री जैन प्रवचन को सम्यग् रूप में जानकर उसकी आज्ञा में रहकर प्रयत्नपूर्वक अनुकूलता छोड़कर प्रतिकूलता को सहन करते दृढ़ लक्ष्य वाला और प्रमाद का त्याग में लगा हुआ आत्मा, चरण करण के पालन में समर्थ निष्पाप बल वीर्य पुरुषार्थ पराक्रम होने पर दीर्घकाल चारित्र पालन करता है और जब बल वीर्य आदि कम होने लगता तब आखिरी उम्र में शीघ्रमेव आराधना करे। अन्यथा बल वीर्य आदि होने पर भी जो मढ़ अन्तिम आराधना की इच्छा करे उसे मैं साधुता से हारा हुआ मानता हूँ, परन्तु जो धर्म स्वीकार करने के बाद शीघ्र ही विघ्न करने वाली व्याधि हो, अथवा मनुष्य तिर्यंच अथवा देव के अनुकूल उपसर्ग हो, या शत्र चारित्र धन का अपहरण-चारित्र भ्रष्ट करे, दुष्काल अथवा अटवी में अत्यन्त गलत मार्ग में चला जाए, जंघा बल खत्म हो जाए या इन्द्रियों में मन्दता आ जाए, नए-नए विशेष धर्म गुणों के प्राप्ति की शक्ति कम हो जाए, अथवा अन्य कोई ऐसा भयानक कारण बन जाए तो शीघ्रमेव अन्तिम आराधना करनी चाहिए, तो वह दोष रूप नहीं है।
परन्तु जो स्वयं कुशील है, कुशील की संगति में ही प्रसन्न है, हमेशा पापी मन, वचन, काया रूप प्रचण्ड दण्ड वाला है वह आराधना के योग्य ही नहीं है । तथा प्रकृति से क्रूर चित्तवाला कषाय से कलुषित, महान भयंकर द्वेषी,