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श्री संवेगरंगशाला उपाय करने वाला आराधना की योग्यता को प्राप्त कर ही सकता है। आराधना करने वाले को भी कषाय रूपी शल्य का उद्धार करना चाहिए। वह आराधना करके पूर्व में प्रथम से ही उसे शल्य रहित तो वह भी आराधना के योग्य जानना । ऋण देने के कारण जो अन्य लेनदार को मान्य न हो वह और लेनदार मान्य हो वह भी, यदि किसी भी रूप में व्यापारी गण की अनुमति हो तो वह आराधना के लिए योग्य है । अन्यथा आराधना में रहे हुए और संघ उसे मान्य करता हो उसके प्रति लेनदार को प्रद्वेष होने से प्रवचन की मलिनता होती है। और जिसको सन्मान और उपदेश देकर अपने-अपने परिवार को आजीविकादि में स्थिर किया हो, ऐसे परिवार को छोड़ने वाला निश्चय ही आराधना करने योग्य है। अन्यथा लोक में निन्दा होती है और सर्वथा आजीविका के प्रबन्ध में सामर्थ्य के अभाव में भी विशिष्ट धार्मिक लोगों की यदि अनुमति हो अर्थात् हम अपना किसी तरह गुजर-बसर करेंगे इस प्रकार छोड़ने वाला आराधक समझना, तो परिवार को जैसे-तैसे छोड़ने वाला भी आराधना के योग्य जानना । तथा प्रकृति से जो विनीत हो, प्रकृति से ही एक साहसिक हो, प्रकृति से अत्यन्त कृतज्ञ और संसारवास निर्गुण हो, उस कारण से संसारवास से वैरागी बना हो, स्वभाव से ही अल्प हास्य वाला हो, स्वभाव से ही अदीन और प्रकृति से ही स्वीकार किए कार्य को पूर्ण करने में शरवीर हो, तथा जिसने पाप का त्याग किया हो, आराधना में रहने वाला, अन्य आराधना को सुनकर या देखकर जो उनकी भक्ति में प्रेमी मन वाला होता है। मैं भी श्री सर्वज्ञ कथित विधिपूर्वक क्रमशः आचरण करते पूर्ण साधुता को प्राप्त कर पुण्य से ऐसा सुमाधु कब, किस तरह होऊँगा ? इस तरह अपने आत्मा में चिन्तन करने वाला, भावना से श्रेष्ठ बुद्धिमान स्थिर शान्त प्रकृति वाला, और जो शिष्टजन के सन्मान पात्र हो, उसे आराधना के योग्य जानना चाहिए। अथवा पूर्व में अत्यन्न उग्र मन, वचन, काया की प्रवृत्ति वाला, क्रूरकर्मी, हमेशा मदिरा पान करने वाला, गन्ना आदि मादक वस्तु का आसेवन करने वाला, पान और मांस का भोजन करने में लालची मन वाला, स्त्री, बाल, वृद्ध की हत्या करने वाला, चोरी और परस्त्री सेवन में तत्पर, असत्य बोलने में प्रेम रखने वाला, तथा धर्म की हँसी करने वाला भी पीछे से कोई भी वैराग्य का निमित्त प्राप्त कर पछतावा करने वाला परम उपशम भाव को प्राप्त करने वाला, वह शुभाशय वाला, धीर पुरुष भी राजपुत्र वंकचूल तथा चिलातिपुत्र आदि के समान निश्चय ही आराधना के योग्य है। वह इस प्रकार है -