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श्री संवेगरंगशाला
भिल्लपति वंकचूल अनिमेष नेत्रों से उस मार्ग को देखता रहा, ऐसा करते लाया हुआ भोजन (पाथेय) खत्म हो गया। तब निस्तेज मुख वाला, भूख से पीड़ित, वापिस घूमकर पल्ली की ओर चला। परन्तु वहाँ से आगे बढ़ने में असमर्थ हो गया और श्रम से पीड़ित वृक्ष की शीतल छाया में नये कोमल पत्तों की शय्या में विश्राम करने लेने के लिए वह सो गया। और परिवार के पुरुष चारों तरफ कंदमूलफल लेने के लिए गये, जंगल को अवलोकन करते अति प्रसन्न बने उन्होंने एक प्रदेश में सुन्दर फलों के भार से नमा हुआ सैंकड़ों डालियों से युक्त, किंपाक फल नामक एक बड़ा वृक्ष देखा, उसके ऊपर से पके हुए पीले फलों को इच्छानुसार ग्रहण किया, और विनयपूर्वक नम कर उन्होंने वे फल श्री वंकचूल को दिया, उसने कहा-हे भाइयों! पूर्व में कभी भी यह फल नहीं देखा है, देखने में फल सुन्दर हैं परन्तु इसका नाम क्या है ? उन्होंने कहा-स्वामिन् ! इसका नाम हम नहीं जानते हैं, केवल पका हुआ होने से श्रेष्ठ रस का अनुमान कर रहे है । पल्लीपति ने कहा—यदि अमृत समान हो तो भी उसका नाम जाने बिना इन फलों को मैं नहीं खाऊँगा । उस समय आसक्त उस एक को छोड़कर भूख से पीड़ित शेष सभी पुरुष उस फल को खाने लगे। फिर विषयों के समान प्रारम्भ में मधुर और परिणाम में विरस उन फलों को खाकर सोये हुए उनकी चेतना जहर के कारण नष्ट हो गई, फिर दोनों आँखें बन्द हो गई और अन्दर दम घुटने लगा और वे जैसे सुख शय्या में सोये हों इस तरह सोने लगे। उसके बाद उनका जीवन लकर जसे चोर भागता है वैसे सूर्य अस्त हो गया, और पक्षियों ने भी व्याकुल शब्द उन जीवों के मरण का जाहिर किया।
उस समय सर्वत्र पृथ्वी मण्डल को मानो कंकुम के रस से रंग करते और चक्रवाकों को विरह से व्याकुल करते संध्या का रंग सर्वत्र फैल गया। कुलटा स्त्री के समान काली श्याम कान्ति वाले वस्त्र से शरीर ढका हो, वसे तमाल वृक्ष के गुच्छे समान कालो अंधकार की श्रेणी फैल गई। नित्य राहु के निकलते चन्द्र में से मानो चन्द्र के टुकड़े का समूह अलग होते हैं वैसे ताराओं का समूह शीघ्र ही सर्वत्र फैल गया। उसके पश्चात् तीनों जगत को जीतने के लिए कामरूपी मुनि के शयन के लिए स्फटिक की (पटड़ा) चौकी समान निर्मल देवों के भवन प्रांगण के बीच स्थापन किये हए सफेद सोने के पूर्ण कलश जैसा गोलाकार आकाश रूपी सरोवर में खिला हुआ सहस्रपत्र कमल जैसा लाल मानो रात्री रूपी स्त्री का गोरोचन का बड़ा जत्था न हो ऐसे चन्द्र का भी उदय हुआ। तब जाने का समय अनुकुल जानकर पल्लीपति ने ये पुरुष सोये हुए हैं ऐसा मानकर बड़ी आवाज से बुलाया, बारम्बार आवाज देने पर भी