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सर्वार्थसिद्धि में आत्म-विमर्श
प्रमुख भारतीय दर्शनों एवं जैनदर्शन में आत्माविषयक मान्यताएँ स्वरूप/लक्षण मूर्त/अमूर्त अती परिमाण| भेद |
एक/ मोक्षके
त्य | अनेक अनन्तर जीव जैन | उपयोगमय
अमूर्त, मूर्त | कर्ता | स्वदेह |संसारी |नित्यानित्य अनेक |ऊर्ध्वगामी परिमाण | एवं सिद्ध
होकर लोक के अग्रभाग
पर स्थित न्याय - आत्मत्वजातियुक्त। ज्ञान, | अमूर्त | कर्ता | व्यापक, | भेद नहीं | नित्य अनेक जड़ वैशेषिक | इच्छा, दुःख, सुख, द्वेष, प्रयत्न
| आदि गुण आगन्तुक हैं। सांख्य | चेतन, गुणत्रय से भिन्न
अकर्ता, व्यापक
नित्य |अनेक
पुनः नहीं निष्क्रिय मीमांसा | चेतनालक्षण अमूर्त कर्ता व्यापक
नित्य अनेक स्वर्गस्थ । | वेदान्त | अज्ञान की व्यष्टि से आच्छन्न अमूर्त
व्यापक | जीव एवं | नित्य |अनेक मोक्ष/ब्रह्म | सत्, चित् एवं आनन्दमय
ब्रह्म
| अंश में विलीन बौद्ध | पुद्गल/रूप, विज्ञान, वेदना
| स्रोतापन्न | अनित्य |अनेक निर्वाण/सन्तति संज्ञा एवं संस्कार स्कन्ध रूप
सकृदागामी
प्रवाह समाप्त - अनात्मवाद
अनागामी - विज्ञान का प्रवाह
अर्हत् चार्वाक | चारभूतों से
| कर्ता | देहपरिमाण - अनित्य | अनेक मोक्ष की । उत्पन्न चेतन
अवधारणा नहीं,
बंधता
संक्षेप में उल्लेख निम्न सारणी में किया जा रहा है । जैन दर्शन एवं भारतीय दर्शनों में आत्मा-विषयक मान्यता - भेदों का
कत्तो | व्यापक
अमूर्त
मृत्यु के साथ ही
चेतना का नाश