________________
आचारांगसूत्र में अहिंसा
301
उदाहरण सम्मान की रक्षा के लिए की जाने वाली हिंसा के अन्तर्गत आते हैं। पूजा अर्चना के लिए भी वनस्पति, जल आदि की हिंसा की जाती है। पहले देवी-देवताओं की पूजा के लिए पशुओं की बलि दी जाती थी, अब उसमें काफी कमी आयी है, किन्तु अभी और प्रयत्न अपेक्षित हैं। पृथ्वी, जल, वायु एवं वनस्पति को बचाना है तो इनका अपव्यय रोकना होगा, जिसकी प्रेरणा आचारांगसूत्र में पदे-पदे प्राप्त होती है। कोई जन्मोत्सव के लिए तो कोई मृत्यु-प्रसंग पर वनस्पति, जल आदि का अपव्यय करता है। कोई अपने दुःखों का प्रतिघात करने के लिए ऐसे उपाय अपनाता है, जिनसे जैविक पर्यावरण का हनन होता है। वास्तव में तो दुःख का प्रतिकार करने हेतु आन्तरिक ज्ञान एवं दृष्टि की निर्मलता उपयोगी होती है, किन्तु अज्ञान के कारण मनुष्य बाह्य सुख-सुविधाओं को जुटाकर ही दुःख का प्रतिकार करना चाहता है। मनुष्य कभी अपने पाप से मुक्ति पाने के लिए भी हिंसा करता है। वह कभी कोई अपराध करता है, फिर उस अपराध को छिपाने के लिए हिंसा का सहारा लेता है। ऐसी अनेक घटनाएँ आज के युग में प्रकाश में आ रही हैं। पति द्वारा प्रेमिका या पत्नी की हत्या अथवा पत्नी एवं प्रेमिका द्वारा पति की हत्या अपने अपराधों को छिपाने के लिए की जा रही है। आचारांग में ऐसी हिंसा के कारण को पाप-मोक्ष के प्रयोजन से की जाने वाली हिंसा कहा गया है। ___ आज अधिकांश हिंसा सुख-सुविधाओं के संवर्धन में लगे मानव-समुदाय के द्वारा की जा रही है। मानव-समुदाय किसी भी देश का क्यों न हो, वह अपनी सुख-सुविधाएँ बढ़ाकर पर्यावरण में असन्तुलन उत्पन्न कर रहा है, जिसे आचारांगसूत्र ने पृथ्वीकाय, अप्काय, वायुकाय आदि का समारम्भ कहा है। मनुष्य सुख-सुविधाएँ प्राप्त कर इन्हें प्रदूषित कर रहा है। ए.सी. हो या फ्रिज इनके द्वारा वायु प्रदूषण निरन्तर बढ़ रहा है। ग्लोबल वार्मिंग एवं ओजोन परत में छेद होने का कारण भी सुख-सुविधाओं की सामग्री का विस्तार है। बड़े-बड़े कल-कारखाने एवं हिंसक कत्लखाने भी पर्यावरण को प्रदूषित कर रहे हैं। __ आचारांग सूत्र में चमड़े, रक्त, हड्डी, मांस आदि की प्राप्ति के लिए त्रस जीवों की हिंसा की भी चर्चा की गई है। वहाँ पशु आदि त्रस जीवों के विभिन्न अंगों की हिंसा के अनेक कारण प्रतिपादित हैं। आज सौन्दर्य प्रसाधनों के निर्माण में विभिन्न