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जैनागम साहित्य में अहिंसा हेतु उपस्थापित युक्तियाँ
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अहिंसा सभी प्राणियों को जीने का अधिकार प्रदान करती है। यदि पेड़-पौधे, पशु-पक्षी आदि सबके जीने के अधिकार या उनकी जीवन प्रियता की भावना का आदर किया जाए तो उनकी हिंसा में निश्चित ही कटौती संभव है। 2. सभी जीव चेतनाशील हैं ___ जिस प्रकार मानव चेतनाशील प्राणी है, उसी प्रकार अन्य जीवों में भी चेतना है। भगवान महावीर ने जैनागमों में एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीवों में ज्ञान-दर्शन स्वरूप चेतना को स्वीकार किया है। एकेन्द्रिय जीवों में पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक एवं वनस्पतिकायिक जीवों का समावेश होता है, क्योंकि इनमें एक ही स्पर्शनेन्द्रिय होती है। द्वीन्द्रिय जीवों (लट, केंचुआ आदि) में स्पर्शन के साथ रसना, त्रीन्द्रिय जीवों (चींटी आदि) में इन दोनों के साथ घ्राण तथा चतुरिन्द्रिय जीवों में चक्षु इन्द्रिय सहित चार इन्द्रियाँ होती हैं। पंचेन्द्रिय में श्रोत्रेन्द्रिय भी होती है। पंचेन्द्रिय जीव दो प्रकार के होते हैं- संज्ञी अर्थात् मन वाले एवं असंज्ञी अर्थात् मन रहित। मनोयुक्त पंचेन्द्रिय जीवों में मनुष्य, पशु, पक्षी, उरपरिसर्प, भुजपरिसर्प एवं जलचर जीव हमें दृष्टिगोचर होते हैं। नारकी एवं देव भी पंचेन्द्रिय होते हैं, किन्तु वैक्रिय शरीरधारी होने के कारण वे हमारे चर्मचक्षुओं से दिखाई नहीं देते हैं। इस प्रकार जीवों की विविधता है। किन्तु जीव छोटे हों या बड़े, एकेन्द्रिय हों या पंचेन्द्रिय-सभी जीव चेतनाशील हैं। चेतनाशील होने के कारण हमारी उनके प्रति आत्मीयता एवं संवेदनशीलता अपेक्षित है। संवेदनशीलता जागृत करते हुए आचारांग सूत्र में कहा गया है -
तुमं सि णाम तं चेव, जं हंतव्वं ति मण्णसि। तुमं सि णाम तं चेव, जं अज्जावेतव्वं ति मण्णसि। तुम सि णाम तं चेव, जं परितावेतव्वं ति मण्णसि।। तुमं सि णाम तं चेव, जं परिघेत्तव्वं ति मण्णसि।
तुमं सि णाम तं चेव, जं उद्दवेतव्वं ति मण्णसि।" तुम वही हो जिसे तुम मारने योग्य समझते हो, तुम वही हो जिसे तुम शासन करने योग्य समझते हो, तुम वही हो जिसे तुम परिताप देने योग्य मानते हो, तुम वही हो जिसे तुम गुलाम बनाने योग्य मानते हो, इसी प्रकार तुम वही हो जिसे