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जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन
जल का दुरुपयोग भी है। जल का यदि आवश्यक एवं सीमित उपयोग हो तथा इसके अनावश्यक दुरुपयोग को रोका जाए तो जल की समस्या पर भी विजय पायी जा सकती है तथा उससे होने वाली गंदगी एवं प्रदूषण को भी रोका जा सकता है। इसी प्रकार लकड़ी के उपयोग को मर्यादित कर लिया जाए तो वनों
की कटाई पर नियन्त्रण पाया जा सकता है। 4. उपभोग-परिभोग परिमाणव्रत मानसिक प्रदूषण को भी नियन्त्रित करता है तो
बाह्य भौतिक प्रदूषण को भी रोकता है । भोगोपभोग की वस्तुओं की मर्यादा करने वाले व्यक्ति की इच्छाएँ सीमित होती हैं। असीमित इच्छाओं से व्यक्ति का अन्तर्मन दूषित होता है तथा उसका प्रभाव बाह्य प्रदूषण को बढ़ाने के रूप
में व्यक्त होता है। 5. आज यदि कोई यह व्रत कर ले कि उसे पॉलीथिन की थैलियों का प्रयोग नहीं
करना है तो इससे पॉलीथिन की थैलियों से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण पर रोक लगेगी। प्रश्न यह खड़ा होता है कि एक व्यक्ति के द्वारा ऐसा व्रत लेने से क्या होगा ? तो कहना होगा कि इस प्रकार का व्रत लेने की सामूहिक प्रेरणा करनी होगी। जितने व्यक्ति इसका प्रयोग छोड़ेंगे, उतने ही अनुपात में तज्जन्य प्रदूषण कम हो सकेगा। उल्लेखनीय है कि राजस्थान सरकार ने पॉलीथिन की थैलियों के प्रयोग पर रोक भी लगायी है । इसका जब अन्य पदार्थों के साथ गाय भक्षण करती है तो उसके प्राण खतरे में पड़ जाते हैं। पॉलीथिन की थैली तो एक उदाहरण है। इसी प्रकार अन्यविध प्रदूषणों को रोकने हेतु भोगोपभोग की मर्यादा एक महत्त्वपूर्ण साधन सिद्ध हो सकती है। सरकार भी इसमें बृहत्स्तर पर नियम बनाकर अपना योगदान कर सकती है। चमड़े का प्रयोग हो या माँस का प्रयोग, उसके प्रयोग का यदि त्याग कर लिया जाए तो पशुवध पर तो रोक लगेगी ही, किन्तु कुल मिलाकर पारिस्थितिकी संतुलन एवं
पर्यावरण पर भी अच्छा प्रभाव पड़ेगा। 6. धूम्रपान, शराब, गुटखा आदि के सेवन का त्याग करके भी पर्यावरण को
शुद्धबनाने में सहयोग किया जा सकता है। गुटखे के पाउच भी आज पर्यावरण प्रदूषण को निरन्तर बढा रहे हैं।