Book Title: Jain Dharm Darshan Ek Anushilan
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 463
________________ जैन और बौद्ध धर्म-दर्शन : एक तुलनात्मक दृष्टि 445 छह आभ्यन्तर तप हैं । ये दोनों प्रकार के तप आत्मसंयम के साथ संवर एवं निर्जरा का पथ प्रशस्त करते हैं । तप के द्वारा पूर्वबद्ध कर्मों के फलभोगकाल एवं फलानुभव में कमी आती है तथा कर्मों की उदीरणा होकर उनकी शीघ्र निर्जरा हो जाती है । स्वाभाविक रूप से उदय में आने वाले कर्मों को समय से पूर्व उदय में लाने की प्रक्रिया उदीरणा कहलाती है । तप के द्वारा यह उदीरणा सम्भव होती है। गहनता से विचार किया जाए तो समभाव की साधना एवं आत्मजय का मार्ग तप के द्वारा प्रशस्त होता है। इसके द्वारा रागद्वेषादि विकार क्षीण होते हैं। जिस तप से विकारों पर विजय प्राप्त न हो तथा अहंकार, क्रोध आदि कषायों की वृद्धि हो, उस तप को जैनदर्शन में अज्ञान तप या बाल तप कहकर हेय माना गया है। सम्यक् दर्शन एवं सम्यक् ज्ञानपूर्वक किया गया तप ही जैनदर्शन में निर्जरा का साधन माना गया है। अज्ञानपूर्वक किया गया दीर्घकालीन तप कोई अर्थ नहीं रखता। बौद्धदर्शन में जिस तप को कायक्लेश स्वीकार कर हेय माना गया है वह सम्भवतः दीर्घकालीन अनशन तप है, क्योंकि गौतम बुद्ध जब शरीर को कृश करने वाली दीर्घ तपसाधना कर रहे थे, तब उन्हें शरीर की अशक्तता का अनुभव हुआ एवं बोधि की प्राप्ति में कठिनाई हुई। सुजाता के द्वारा लायी गई खीर से उन्होंने पारणक कर लिया एवं फिर कठोर तप को त्यागकर ध्यान-साधना में सन्नद्ध हो गए और उन्हें बोधि प्राप्त हो गई। अतः उनका निष्कर्ष रहा- वीणा के तारों को इतना भी मत खींचो कि वे टूट जाएं एवं उन्हें इतना भी ढीला मत छोड़ो कि वे बज ही न सकें। बुद्ध की साधना का यह मार्ग मध्यम मार्ग कहलाया। बौद्धमत में भी कायक्लेश स्वरूप दीर्घकालीन अनशन तप के अतिरिक्त तप के अन्य भेद दुःखमुक्ति की साधना में किसी भी प्रकार से हेय नहीं माने जा सकते। वासना के संस्कार को तोड़ने में तप की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है, इससे बौद्ध दर्शन भी असहमत नहीं हो सकता। भिक्षाचर्या, रस-परित्याग, प्रतिसंलीनता, प्रायचित्त, विनय, वैयावृत्त्य, स्वाध्याय, ध्यान आदि भेद किसी न किसी रूप में उन्हें भी मान्य ही हैं, भले ही उन्होंने इनका सीधा प्रतिपादन न किया हो। तीर्थंकर महावीर की वाणी का कुछ अंश जैनागमों के रूप में सुरक्षित है। इन आगमों पर नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीका, टब्बा आदि व्याख्यासाहित्य भी लिखा

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