Book Title: Jain Dharm Darshan Ek Anushilan
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 494
________________ 476 जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन में अध्ययन, अध्यापन, यजन, याजन आदि को ही ब्राह्मण का लक्षण कहा गया है, जिसका सम्बन्ध आन्तरिक शुद्धि से उतना नहीं है, जितना बाह्य कर्तव्यों से। उत्तराध्ययनसूत्र के 12 वें अध्ययन में सोमदेव के द्वारा यक्ष को कहा गया है कोहो य माणो य वहो य जेसिं मोसं अदत्तं च परिग्गहं च। ते माहणा जाई-विज्जाविहूणा ताई तु खेत्ताइं सुपावयाई ।। जो क्रोध, मान, हिंसा, असत्य, चौर्य और परिग्रह से युक्त हैं वे ब्राह्मण जाति एवं विद्या से हीन हैं। तुब्भेऽथ भो!भारधरा गिराणं, अठं न जाणह अहिज्ज वेए।" वे ब्राह्मण तो वाणी का भार लिए घूमते हैं । वेदों को पढ़कर भी उनका अर्थ नहीं जानते हैं । इस प्रकार जैनागम उत्तराध्ययनसूत्र में ब्राह्मण को एक उच्च चरित्रवान् व्यक्ति के रूप में देखने का प्रयत्न किया गया है। वेदों को पढ़कर उनका अर्थ जानने तथा उस अर्थ के अनुरूप आचरण करने की प्रेरणा की गई है। ___ जैनागमों में वर्ण-व्यवस्था का निरूपण नहीं हुआ है, किन्तु उत्तरवर्ती साहित्य में जैनाचार्यों ने वर्ण-व्यवस्था का भी प्रतिपादन किया है। जिनसेनाचार्य (9वीं शती) के आदिपुराण में उल्लेख है कि आदि तीर्थङ्कर ऋषभेदव ने क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र वर्णों की रचना की तथा उनके पुत्र भरत ने ब्राह्मण वर्ण की रचना की। इस प्रकार आदि पुराण में चारों वर्गों का उल्लेख है। इसके पश्चात् आशाधर (13 वीं शती) के सागारधर्माभूत एवं सोमदेव सूरि के यशस्तिलकचम्पू में भी चार वर्णों का कथन है। दूसरी ओर 11 वीं शती के दार्शनिक प्रभाचन्द्र ने वेद के मन्त्र "ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद् बाहू राजन्यः कृतः । उरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रोऽजायत ।" का निरसन करते हुए कहा है- ब्रह्म ब्राह्मण है या नहीं? यदि ब्रह्म ब्राह्मण नहीं है तो उससे ब्राह्मण का जन्म कैसे हो सकता है ? जो मनुष्य नहीं है उससे मनुष्य की उत्पत्ति नहीं हो सकती। यदि ब्रह्म ब्राह्मण है तो वह सभी अंगों से ब्राह्मण है या मात्र मुख से ब्राह्मण है ? यदि वह सभी अगों से ब्राह्मण है तो विश्व के सभी प्राणी

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