Book Title: Jain Dharm Darshan Ek Anushilan
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 498
________________ 480 जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन चन्द्रप्रभ विजय, श्याम - भृकुटि, ज्वाला, ज्वालिनी सुविधिनाथ अजित, जय सुतारा, महाकाली शीतलनाथ ब्रह्म अशोक, मानवी श्रेयांसनाथ ईश्वर, यक्षराज मानवी, श्रीवत्सा, गौरी वासुपूज्य कुमार चण्डा, प्रचण्डा, चन्द्रा, गान्धारी विमलनाथ षण्मुख, चतुर्मुख विदिता, वैरोटी अनन्तनाथ पाताल अंकुशा, अनन्तमती धर्मनाथ किन्नर कन्दर्पा, पन्नगा, मानसी शान्तिनाथ गरुड़ निर्वाणी, महामानसी कुंथुनाथ गन्धर्व कला अरनाथ यक्षेन्द्र, यक्षेश्वर धारणी, तारावती मल्लिनाथ कुबेर वैरोट्या, धरणप्रिया, अपराजिता मुनिसुव्रत नरदत्ता, वरदत्ता, बहुरूपिणी नमिनाथ भृकुटि गांधारी, चामुण्डा नेमिनाथ/ गोमेध अम्बिका, कुष्माण्डी, कुष्माण्डि अरिष्टनेमि पार्श्वनाथ पार्श्व, वामन, पद्मावती धरण 24. महावीर मातंग सिद्धायिका, सिद्धायिनी ___ यक्ष-यक्षियों का यह उल्लेख जैन धर्म पर वैदिक आगमों का प्रभाव है । जैनागम समवायांगसूत्र (चतुर्थ-पंचम शती) में तीर्थंकरों, उनके माता-पिता, जन्म, नगर, चैत्यवृक्ष आदि का तो उल्लेख है, किन्तु उनके यक्ष-यक्षियों का कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होता है । यक्ष-यक्षियों का श्वेताम्बर परम्परा में सर्वप्रथम उल्लेख कहावली (11 वीं-12 वीं शती) और प्रवचनसारोद्धार (14 वीं शती) में प्राप्त होता है। दिगम्बर परम्परा के तिलोयपण्णत्ति (6-7 वीं शती) ग्रन्थ में यक्ष-यक्षियों का कथन हुआ है, जिसे विद्वज्जन प्रक्षिप्त मानते हैं । यक्ष-यक्षियों की मूर्तियों के वरुण 23. पा

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