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जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन
गया है। यंत्र, मंत्र, तंत्र का प्रयोग हो या नाम, जप आदि का, ये नैगमिक परम्पराएँ जैन वाङ्मय में बाद में ही आई हैं। ___ सांस्कृतिक दृष्टि से देखें तो जैन आगमों ने जो साधना का मार्ग प्रशस्त किया है वह लौकिक अभ्युदय को नहीं, आध्यात्मिक उन्नयन को लक्ष्य करता है। सामाजिक परम्पराओं की दृष्टि से जैनागमों में वही संस्कृति चित्रित है जिसे हम वैदिक संस्कृति अथवा भारतीय संस्कृति कहते हैं। सन्दर्भ:1. अत्थं भासइ अरहा, सुत्तं गंथंति गणहरा निउणं । 2. प्रमाणनयतत्त्वालोक, 4.1-2 3. प्रमाणनयतत्त्वालोक, 4.4 4. स च द्वेधा लौकिको लोकोत्तरश्च ।- प्रमाणनयतत्त्वालोक, 4.6 5. आगमों के विवरण हेतु द्रष्टव्य, जिनवाणी, जयपुर, जैनागम विशेषाङ्क, 2002 6. षट्खण्डागम में मनुष्यिणी में 14 गुणस्थान स्वीकार किए गए हैं, जिससे ज्ञात होता है कि
दिगम्बर परम्परा में भी स्त्रीमुक्ति स्वीकृत रही है। यदि दिगम्बर ऐसा नहीं मानते हैं तो डॉ. सागरमल जैन के अनुसार यह यापनीय परम्परा का ग्रन्थ सिद्ध होता है। द्रष्टव्य, जैनधर्म
का यापनीय सम्प्रदाय, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी, 1996, पृष्ठ 101 7. उदाहरण के लिए द्रष्टव्य-ऋग्वेद 2.33 के रुद्रसूक्त के मन्त्र 1 एवं 2 8. उत्तराध्ययनसूत्र 12.45-47 9. तं से अहिताए तं से अबोधीए ।- आचारांगसूत्र 1.1.2-5 उद्देशक में 10. इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदणा-माणण-पूयणाए।- आचारांगसूत्र 1.1.2-5 उद्देशक में 11. आचारांगसूत्र, प्रथम श्रुतस्कन्ध, प्रथम अध्ययन, पंचम उद्देशक 12. विशेषावश्यक भाष्य, दिव्यदर्शन ट्रस्ट, मुम्बई, भाग-2, गणधरवाद प्रकरण 13. जैनागम उत्तराध्ययनसूत्र की निम्नांकित गाथा में ओंकार शब्द प्रयुक्त हुआ है, अन्यत्र नहीं
न वि मुण्डिएण समणो, न ओंकारेण बम्भणो।
न मुणी रण्णवासेणं कुसचीरेण न तावसो।।- उत्तराध्ययन सूत्र, 25.31 14. बृहद्रव्यसंग्रह टीका में उद्धृत प्राचीन गाथा 15. वज्रपंजरस्तोत्र, श्लोक 2-3 16. समुवट्ठियं तहिं संतं, जायगो पडिसेहए।
नहु दाहामि ते भिक्खं, भिक्खू जायाहि अन्नओ ।।