Book Title: Jain Dharm Darshan Ek Anushilan
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 506
________________ 488 जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन 31. उत्तराध्ययनसूत्र, 28.15 32. (i) आदि पुराण, पर्व 16, श्लोक 243-245 (ii) जैनाचार्य जातिवाद का निरसन करते हैं । आशाधर कहते हैं कि शूद्र भी काललब्धि प्राप्त होने पर धर्मलाभ प्राप्त कर सकता है।- सागार धर्मामृत, श्लोक 2 33. ब्रह्मप्रभवत्वादस्य च तदङ्गत्वे अतिप्रसंग एव, सकलप्राणिनां तत्प्रभवतया ब्राह्मण्यप्रसंगात, किंच ब्रह्मणो ब्राह्मण्यमस्ति न वा? यदि नास्ति, कथमतो ब्राह्मणोत्पत्तिः ? न हि अमानुष्यात मनुष्योत्पत्तिः प्रतीता । अथ अस्ति, किं सर्वत्र मुखप्रदेशे एव वा? यदि सर्वत्र, स एव प्राणिनां भेदाभावानुषङ्गः, अथ मुखप्रदेशे एव, तदान्यत्रास्य शूद्रत्वानुषङ्गात् न विप्राणां तत्पादयोः वन्द्यः स्यात्- न्यायकुमुदचन्द्र, भाग 2, श्लोक 65 34. (i) लोगस्स उज्जोयगरे धम्मतित्थयरे जिणे ।- सामायिक सूत्र, लोगस्स पाठ (ii) नमोत्थुणं, अरिहंताणं भगवंताणं आइगराणं तित्थयराणं, सयंसम्बुद्धाणं, पुरिसुत्तमाणं, पुरिससीहाणं, पुरिसवरपुंडरियाणं, पुरिसवरगंधहत्थीणं, लोगुत्तमाणं, लोगनाहाणं, लोगहियाणं, लोगपईवाणं, लोगपज्जोयगराणं, अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं । सामायिक सूत्र, शक्रस्तव 35. समाधितन्त्र, श्लोक 1 एवं 2 36. वर्द्धमानद्वात्रिंशिका, सिद्धसेनसूरिकृत, अनुवाद एवं विवेचन-साध्वी डॉ. हेमप्रभा 'हिमांशु', ___ मुनि श्री हजारीमल स्मृति प्रकाशन, ब्यावर, 2004, श्लोक 13 37. वर्द्धमानद्वात्रिंशिका, श्लोक 14 38. वर्द्धमानद्वात्रिंशिका, श्लोक 10 39. वर्द्धमानद्वात्रिंशिका, श्लोक 8 40. वर्द्धमानद्वात्रिंशिका, श्लोक 3 41. इन नामों का संकलन डॉ. सागरमल जैन की पुस्तक 'जैन धर्म और तान्त्रिक साधना', पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी, 1997 के द्वितीय अध्याय के आधार पर किया गया है। द्रष्टव्य, पृ. 31-32 42. डॉ. सागरमैल जैन, जैनधर्म और तान्त्रिक साधना, वाराणसी, पृ. 22 43. सव्वपावप्पणासणो।- नमस्कारमन्त्र की चूलिका 44. द्रष्टव्य, जैन धर्म और तान्त्रिक साधना, वाराणसी, अध्याय 5 45. द्रष्टव्य, जैन धर्म और तान्त्रिक साधना, वाराणसी, अध्याय 7 46. सामायिकसूत्र के पाठ

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