Book Title: Jain Dharm Darshan Ek Anushilan
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 499
________________ 481 जैन आगम - परम्परा एवं निगम-परम्परा में अन्तः सम्बन्ध सम्बन्ध में डॉ. सागरमल जैन लिखते हैं- “ यद्यपि चक्रेश्वरी, अम्बिका, पद्मावती आदि के अंकन और स्वतन्त्र मूर्तियाँ लगभग नवीं शताब्दी में मिलने लगती हैं, किन्तु 24 तीर्थङ्करों के 24 यक्षों एवं 24 यक्षियों की स्वतन्त्र लाक्षणिक विशेषताएँ लगभग 11 वीं 12 वीं शती में ही निर्धारित हुई हैं । यक्ष-यक्षियों की मूर्तियों के लक्षणों का उल्लेख इस काल के त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, प्रतिष्ठा सारसंग्रह, निर्वाणकलिका आदि कई ग्रन्थों में मिलता है । इनमें यक्ष-यक्षियों की चर्चा जिन शासन रक्षक देवता के रूप में मिलती है। 242 I जैन परम्परा में ऐहिक अभिलाषा के लिए याचना का निषेध किया गया है, क्योंकि इससे मुक्ति की साधना का पक्ष कमजोर पड़ जाता है, किन्तु जिनशासन रक्षक यक्ष-यक्षियों के प्रचलन में आने के पश्चात् ऐहिक कामनाओं की पूर्ति हेतु उनसे याचना भी प्रारम्भ हुई एवं यह माना गया कि अपनी एवं तीर्थङ्करों की पूजा-उपासना से प्रसन्न होकर ये यक्ष-यक्षियाँ श्रद्धालु भक्तों की शारीरिक, भौतिक आदि संकटों से त्राण तो दिलाती ही हैं, उनकी मनः कामनाओं को भी पूर्ण करती हैं । जैनागमों में मणिभद्र, पूर्णभद्र, तिन्दुक आदि यक्षों और बहुपुत्रिका नामक यक्षी का उल्लेख मिलता है, किन्तु इनकी उपासना को जैनधर्म की ओर से वैधता प्रदान नहीं की गई थी, यक्ष-यक्षियों की पूजा-उपासना को वैधता तभी मिली जब इन्हें तीर्थङ्करों के शासन रक्षक देव-देवियों के रूप में महत्त्व मिला । चौबीस यक्षियों में पद्मावती की सर्वाधिक पूजा होती है । इसके पश्चात् अम्बिका और चक्रेश्वरी का स्थान है। यक्षों में मणिभद्र का सर्वोच्च स्थान है । इसमें सन्देह नहीं कि जैन परम्परा में यक्षियों की मान्यता पर तन्त्रागमों का प्रभाव है, क्योंकि तांत्रिक हिन्दू परम्परा की यक्षियों के अनेक नाम जैन परम्परा में ज्यों के त्यों गृहीत हो गए हैं, यथा- चक्रेश्वरी, काली, महाकाली, ज्वालामालिनी, गौरी, गान्धारी, चामुण्डा, अम्बिका, पद्मावती आदि । जैन परम्परा में श्रुतदेवी के रूप में सरस्वती की उपासना ईसा की प्रथम द्वितीय शती से प्रारम्भ हो गई थी। आदि मंगल के रूप में श्रुतदेवता की स्तुति की जाती रही है तथा जैनाचार्यों ने सरस्वती की स्तुति में अनेक स्तोत्रों की रचना की है ।

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