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जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन
दीक्षित हुए एवं अनुयायी बने । बौद्ध धर्म में अगुलिमाल, नाई उपाली, भंगी सुणीत, सुप्पिय अछूत, कुष्ठ रोगी सुप्रबुद्ध तथा प्रकृति नामक चण्डालिका सदृश निम्नवर्ण के लोग दीक्षित हुए और जैनधर्म में अर्जुनमाली, हरिकेश चाण्डाल जैसे निम्नवर्ग के मनुष्य दीक्षित होकर साधु बने । जैन एवं बौद्ध धर्म ने सबके लिए समानरूप से मुक्ति या निर्वाण का मार्ग प्रस्तुत किया।
जननं जाति: जन्म लेना जाति है । जो जिस योनि में उत्पन्न होता है वह उसकी जाति है। इस आधार पर पशुयोनि में जन्म लेने वाला जीव पशुजाति का, मनुष्ययोनि में जन्म लेने वाला मनुष्य जाति का जीव कहलाता है। जैन आगमों में पाँच प्रकार की जातियों का निरूपण है- एकेन्द्रिय जाति, द्वीन्द्रिय जाति, त्रीन्द्रिय जाति, चतुरिन्द्रिय जाति एवं पंचेन्द्रिय जाति। जन्म से जिस जीव को जितनी इन्द्रियाँ प्राप्त हुई हैं वह उस जाति का कहलाता है। जिसे जन्म के समय मात्र स्पर्शनेन्द्रिय प्राप्त हुई है वह जाति से एकेन्द्रिय है, यथा- पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक एवं वनस्पतिकायिक जीव। जिसे स्पर्शन एवं रसना दो इन्द्रियाँ प्राप्त हुई हैं वे द्वीन्द्रिय जाति के जीव हैं जैसे- लट, इल्ली आदि। जिन्हें इन दो के साथ घ्राणेन्द्रिय भी प्राप्त है, वे त्रीन्द्रिय जीव कहलाते हैं, जैसे चींटी, जूं आदि। इन तीनों के साथ जो चक्षु इन्द्रिय से भी युक्त है, ऐसा जीव चतुरिन्द्रिय जाति का होता है, जैसे- मक्खी, मच्छर आदि। इन चार के साथ जो श्रोत्रेन्द्रिय से भी युक्त होता है वह पंचेन्द्रिय जाति का जीव है, जिसमें देव, नरक, मनुष्य एवं कुछ तिथंच जाति के जीव सम्मिलित हैं। आगे चलकर आदिपुराण में जिनसेन (नौवीं-दसवीं शती) ने मनुष्य जाति को एक पृथक् श्रेणी में स्थापित किया- मनुष्यजातिरेकैव जातिनामोदयाद्भवा। मनुष्यगति नामकर्म के उदय से उत्पन्न सभी मनुष्यों की एक ही मनुष्य जाति' है। आधुनिक भारत में छुआछूत के विरुद्ध आन्दोलन चलाने वाले समाज सुधारकों ने भी समस्त मनुष्यों को रक्त के रंग के आधार पर एकसूत्र में बाँधने का प्रयत्न किया है। ___ जन्म से प्राप्त जाति की अपेक्षा तप बढ़कर होता है। तपसाधना के माध्यम से कोई निम्न कुल या वर्ण का व्यक्ति भी उच्च हो सकता है । जैनागम उत्तराध्ययन सूत्र के बारहवें अध्ययन में हरिकेश चाण्डाल मुनि का उल्लेख आता है, जो इसकी