Book Title: Jain Dharm Darshan Ek Anushilan
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 456
________________ 438 जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन समुदय (कारण) है, दुःख का निरोध है एवं दुःख-निरोध का मार्ग है- इन चार आर्यसत्यों का ज्ञान होने पर दृष्टि सम्यक् हो जाती है। दूसरे शब्दों में चार आर्य सत्यों का सही-सही ज्ञान होना बौद्धमत में सम्यक् दृष्टि है। दृष्टि सम्यक् होने पर आर्य श्रावक दुराचरण एवं उसके मूलकारण को तथा सदाचरण एवं उसके मूलकारण को पहचान लेता है। अविद्या के आश्रित संस्कारों को निर्मल करने का संकल्प ही सम्यक् संकल्प है। नैष्कर्म्य (निष्कामता एवं संसार त्याग) का संकल्प अव्यापाद (द्रोह, घृणा, द्वेष, दुराव आदि न करने) का संकल्प तथा अविहिंसा (हिंसा न करने) का संकल्प ही सम्यक् है। झूठ बोलने , चुगली करने, कठोर वाणी बोलने एवं गप्प हांकने से विरत होना सम्यक् वाक् है। बुद्ध ने भिक्षुओं को सम्बोधित करते हुए कहा- भिक्षुओं! आपस में एकत्रित होने पर दो बातों में से एक होनी चाहिए या तो धार्मिक बातचीत या फिर आर्य मौन। इसे सम्यक् वाणी कहते हैं। जीवहिंसा, चोरी, व्यभिचार आदि से विरत होना सम्यक् कर्मान्त है। सम्यक् कर्मान्त से युक्त व्यक्ति लज्जाशील, दयावान एवं सभी प्राणियों पर अनुकम्पा करने वाला होता है। व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन की शुद्धि के लिए सम्यक् आजीव की महत्ता है। दोषपूर्ण या मिथ्या आजीविका को छोड़ न्यायरीति से आजीविका चलाना सम्यक् आजीव है। दीघनिकाय के ब्रह्मजालसुत्त में विष, शस्त्र, मदिरा एवं मांस का विक्रय करना, झूठा नापतोल करना, नौकर, जानवर आदि का व्यापार करना आदि को मिथ्या आजीविका कहा गया है। अतः सम्यक् आजीव में इनका त्याग किया जाना आवश्यक है। सम्यक् व्यायाम में व्यायाम शब्द का अर्थ है- प्रयत्न, उत्साह, परिश्रम आदि। चित्त में अनुत्पन्न पापयुक्त अकुशल धर्मों को उत्साह एवं प्रयत्नपूर्वक रोकना और उसके लिए निरन्तर यत्नशील रहना सम्यक् व्यायाम है। जैन शब्दावली में कहें तो आसव-निरोध रूप संवर की साधना करना सम्यक् व्यायाम है। निर्जरा भी उसी का परिणाम है। अतः चित्त की अकुशल प्रवृत्तियों का अप्रमत्त होकर निरन्तर प्रहाण करना और कुशल धर्मों को उत्पन्न करना, उत्पन्न कुशल धर्मों की स्थिति, वृद्धि तथा पूर्णता के लिए पुरुषार्थ करना, प्रयत्न करना, उत्साहित होना तथा चित्त से जागरूक रहना सम्यक् व्यायाम है। काया में कायानुपश्यना, वेदनाओं में वेदनानुपश्यना, चित्त में चित्तानुपश्यना और धर्मों में धर्मानुपश्यना होना सम्यक्

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