Book Title: Jain Dharm Darshan Ek Anushilan
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 459
________________ जैन और बौद्ध धर्म-दर्शन : एक तुलनात्मक दृष्टि 441 तथा भारतीय दलितवर्ग को विशाल स्तर पर बौद्धधर्म से जोड़ा । इक्कीसवीं सदी में अनेक विश्वविद्यालयों में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की योजना के अन्तर्गत बौद्ध अध्ययन केन्द्रों की स्थापना हो रही है। बुद्ध की वाणी जितनी मूलरूप में सुरक्षित रही है, उतनी महावीर की वाणी सुरक्षित नहीं रह सकी । बुद्ध की वाणी के संरक्षण हेतु चार माह में ही प्रथम संगीति हो गई थी, जबकि महावीर की वाणी के संरक्षण हेतु उनके निर्वाण के 160 वर्ष पश्चात् प्रथम वाचना हुई। अभी विपश्यना विशोधन विन्यास, इगतपुरी से त्रिपिटकसाहित्य के 140 भाग प्रकाशित हुए हैं, जिनमें अट्ठकथा आदि व्याख्यासाहित्य भी सम्मिलित है। सम्पूर्ण त्रिपिटकसाहित्य पालिभाषा में लिखा गया है । महायान परम्परा का बौद्ध साहित्य संस्कृत में लिखा गया है । संस्कृत में लिखित बौद्ध साहित्य का बहुभाग चीनी, तिब्बती आदि भाषाओं में अनूदित हुआ। उसका बहुत अंश संस्कृत में आज भी अप्राप्य बना हुआ है। बौद्धदर्शन में करुणा का विशेष प्रतिपादन हुआ है । महायान बौद्ध दर्शन महाकरुणा के रूप में करुणा को व्यापकता प्रदान करता है। वहाँ माना गया है कि बोधिसत्त्व में इतना करुणाभाव होता है कि वह संसार के समस्त प्राणियों को दुःखमुक्त करके बाद में स्वयं मुक्त होना चाहता है। ____बौद्धदर्शन में चित्तदशा या मनोविज्ञान का जैनदर्शन की अपेक्षा अधिक सूक्ष्म विवेचन हुआ है । बौद्ध मनोविज्ञान में चित्त की विभिन्न दशाओं का विस्तृत वर्णन हुआ है। चित्त के तीन प्रकार हैं- कुशलचित्त, अकुशलचित्त एवं उपेक्षाचित्त अथवा अव्याकृत चित्त। मोह, निर्लज्जता, चंचलता, लोभ, मान, द्वेष, ईर्ष्या आदि से युक्त चित्त अकुशल होता है। श्रद्धा, स्मृति, पाप भीरुता, अलोभ, अद्वेष आदि धर्मों से युक्त चित्त कुशल होता है। रूप धर्म, चित्त विप्रयुक्त धर्म एवं असंस्कृत धर्मों से युक्त चित्त अव्याकृत कहलाता है। चित्त की अवस्था या प्रवृत्ति के आधार पर उसके चार भेद भी किए गए हैं- 1. कामावचर चित्त 2. रूपावचर चित्त 3. अरूपावचर चित्त एवं 4. लोकोत्तर चित्ता कामनाओं और वासनाओं की प्रधानता से युक्त चित्त को कामावचर चित्त, बाह्य स्थूल विषयों पर योगाभ्यासी चित्त को रूपावचर चित्त, अत्यन्त सूक्ष्म विषयों यथा अनन्त आकाश, अनन्त विज्ञान आदि में लगे चित्त को

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