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जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन
एक ही प्रकार का है, जिसे सामान्य-विशेषात्मक कहा गया है । उसे ही द्रव्यपर्यायात्मक, एकानेकात्मक, भेदाभेदात्मक अथवा नित्यानित्यात्मक कहा जाता है। प्रमाण दो प्रकार के मान्य हैं- 1. प्रत्यक्ष एवं 2. परोक्ष । इनमें परोक्ष प्रमाण के भट्ट अकलङ्क एवं उत्तरवर्ती आचार्यों ने पाँच भेद स्वीकार किए हैं- 1. स्मृति 2. प्रत्यभिज्ञान 3. तर्क 4. अनुमान एवं 5. आगम प्रमाण । बौद्ध दार्शनिक स्मृति, प्रत्यभिज्ञान एवं तर्क को प्रमाण नहीं मानते हैं तथा आगम प्रमाण का भी वे अनुमान प्रमाण में ही समावेश कर लेते हैं । बौद्धधर्म का वैशिष्ट्य ।
बौद्धधर्म का उद्भव यद्यपि जैनधर्म की भाँति भारतीय भूभाग पर हुआ, तथापि बौद्ध भिक्षुओं की प्रचारात्मक दृष्टि के कारण यह धर्म आज एशिया के चीन, तिब्बत, कोरिया, जापान, श्रीलंका, भूटान, बर्मा आदि विभिन्न देशों में व्याप्त है तथा अरबों की संख्या में इसके अनुयायी हैं । यूरोप एवं अमेरिकी देशों में भी यह धर्म निरन्तर प्रसार पा रहा है। प्रसार का आधार हिंसात्मक साधन नहीं, अपितु करुणा, मैत्री एवं मानवता के अहिंसात्मक सिद्धान्त हैं । ईसाई, इस्लाम एवं हिन्दू धर्म के पश्चात् विश्व में सर्वाधिक अनुयायी बौद्धधर्म के माने जाते हैं। ___ जैन धर्म भारतीय धरा पर सुरक्षित रहा, यहाँ पूर्व से उत्तर, पश्चिम एवं दक्षिण तक पहुँचा, किन्तु विदेशों में अपने अधिक अनुयायी न बना सका । इसके अनेक कारण संभव हैं- 1. जैन श्रमण-श्रमणियों की आचारसंहिता अत्यन्त कठोर है जो उन्हें वाहनों द्वारा विदेशी यात्रा के लिए अनुमति प्रदान नहीं करती । 2. जैनधर्म अपनी उदार एवं अनेकान्तवादी दृष्टि के कारण भारतीय वैदिक परम्पराओं के साथ समन्वय बिठाने में सक्षम रहा, अतः उसके समक्ष ऐसी कोई विवशता नहीं रही कि उसे यहाँ से पलायन करना पड़े । बौद्ध भिक्षुओं को भारत से पलायन करना पड़ा, उसमें एक कारण हिन्दू परम्परा का प्रतिरोध भी रहा। ___ जैन धर्मावलम्बी आज अनेक देशों में रह रहे हैं, किन्तु वे मूलतः भारतीय हैं। जो कोई विद्वान् अथवा समणी विदेश में धर्मोपदेश करते हैं वे भी वहाँ रह रहे भारतीय मूल के जैनों को ही अपने उपदेश का लक्ष्य बनाते हैं । बौद्धधर्म भारत में पुनः प्रसार पा रहा है । बीसवीं सदी में डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्वयं बौद्ध बने